सप्त सिंधु भारत' सात नव्य दिव्या लड़ियों वाली पुष्पमाला काव्य संग्रह
यशपाल शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कवि कवि मन जनसाधारण से कहीं अधिक संवेदनशील होता है। उसकी दृष्टि अत्यंत सूक्ष्म और मन- हृदय मननशील व संवेदनशील होता है। मानव को परम सत्ता ने बुद्धि, चेतना और सृजन करने  का गुण विशेष रूप से प्रदान किया है ।काव्य  रचना करना हर एक प्राणी के वश की बात नहीं है। भगवान ने सृष्टि रचना की ।वह असीम शक्तियों गुणों का भंडार है। मानव उसकी सर्वश्रेष्ठ व सर्वोच्च रचना है। वह अपने गुणों- शक्तियों की अभिव्यक्ति नर -नारियों के माध्यम से समूह मानव जाति के सुख ,आनंद  और लोक हितार्थ करवाता है। अतः काव्य रचना की शक्ति मां शारदा के पास है। वह कला की देवी - महाशक्ति और महाविद्या तथा महादेवी है। बागेश्वरी  जिस व्यक्ति पर प्रसन्न होकर उसे रचना कर्म कला का अद्भुत वरदान प्रदान करती है ,तब मूढ़ -से -मूढ़ प्राणी भी साहित्य जगत का सितारा बनकर साहित्य इतिहास के स्वर्णित पन्नों पर अपना नाम अंकित कर जाता है। 
रचना कर्म यद्यपि एक स्वाभाविक धर्म है, परंतु वीणा वादिनी की कृपा बिना असंभव है। काव्य  रचना में कई अपने जीवन के सुख-दुःख, अनुभवों  और समाज में व्यतीत किए लम्हों ,सामाजिक विसंगतियों, कुरीतियां को  अपनी रचनाओं का आधार बनाता है। उसे प्रतीकों, बिम्बों- प्रतिबिंबों के माध्यम से अपने मन की बात कहना अच्छा लगता है। रचना कर्मी का ध्येय समाज, देश व विश्व के कल्याण, विकास और उत्थान होना चाहिए। जहां वहां व्याप्त कुरीतियों - विसंगतियों पर चोट करे जो मानवीय जीवन हेतु पीड़ा दायक और घातक हैं ।स्वस्थ -सबल समाज के लिए जो हानिकारक है ।पाठकगण को नव्य- स्वस्थ चेतना प्रदान करे, सही मायनों में उसे ही श्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सच्चे कवि की पहचान बताते हुए कहा था-'सच्चा कवि वही है जिसे लोक हृदय की पहचान हो ।जो अनेक विशेषताओं और विचित्रताओं के बीच मनुष्य जाति के सामान्य हृदय को देख सके ।इस प्रकार के काव्य को व्यक्तिवाद की परिधि से ऊपर उठा कर लोक अर्थात् समाज के साथ दृढ़तापूर्ण संबंध कर दे'।
प्रस्तुत पावन काव्य संग्रह" सप्त सिंधव भारत '' की रचनाकार प्रीति शर्मा 'असीम' हैं। आप नालागढ़ हिमाचल  प्रदेश देव की पावन भूमि की महान विदूषी कवयित्री हैं। अपनी अनुपम प्रेरणादायक, रचनाओं के कारण साहित्य जगत की जानी-मानी हस्ती हैं। यह एक ऐसी सशक्त हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने काव्य रचना से भारत के कोने-कोने में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और इन्हें अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है। इन्हें 25 संयुक्त काव्य -संग्रहों में स्थान मिला और पाठकों ने रचनाओं को पढ़कर सुख प्राप्त किया तथा इनकी सशक्त कलाम का लोहा स्वीकार किया है।
प्रीति शर्मा असीम' की व्यापक मननशीलता का परिचय' सप्त सिंधव भारत 'काव्य संग्रह में हो जाता है ।इन्होंने इस काव्य- संग्रह को पांच भागों में बांटकर 42 कविताओं के मोती पिरोकर साहित्य जगत की झोली में डाल रही है। 49 नव्य- दिव्य  मोतियों की सात लड़ियों की अद्भुत माला पिरोकर भारत माता के गले में पहनाती हैं, जिसे देखकर महाविद्या हर्षित गर्वित हो उठती है ।
प्रीति शर्मा 'असीम 'जी के प्रथम भाग में 11 रचनाएं राष्ट्र- प्रेम से संबंधित हैं। वह कवि व साहित्य  ही ...क्या , जिसमें राष्ट्र -प्रेम और राष्ट्रभक्ति न हो ।अतः किसी भी देश की आन- बान -शान उसका ध्वज होता है ।इन्होंने अपने देश के 'तिरंगे' झंडे कविता में इसका सुंदर शब्दों में उल्लेख किया है ।
'मेरे देश की आन तिरंगा 
जन-जन की पहचान तिरंगा
लहरा- लहरा गाता।
मेरे देश की शान तिरंगा '
मानव मन के भाव -विचारों  को कहने -समझने का माध्यम भाषा होती है। विश्व के लगभग 200 देशों की अपनी- अपनी राष्ट्रभाषाएं हैं ।इसी प्रकार भारतवर्ष की भी अपनी राष्ट्रभाषा" हिंदी" है ।कवयित्री ने बड़े सुंदर शब्दों का प्रयोग करके 'रूह की हिंदी 'नामक कविता की रचना करके सुख पाया है -
'कलम उठाकर लिखने बैठूं।
मेरा हर अलफाज़
लिख दी जितनी तहरीरें ।
 मेरी हर किताब हिंदी।'
वही देश सबल -सशक्त बनकर अपनी आज़ादी को सुरक्षित  रख सकता है। जिसके नागरिकों के मन- हृदय में देश -प्रेम व राष्ट्रभक्ति का भाव हो। जिन्हें संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ-साथ वतन के प्रति कर्तव्यों को निभाने  का ज्ञान हो ,ललक हो। कवित्री की कविता" देश प्रेम दिवस" में उन भाव विचारों की वानगी देखिए-
आज के दिन....देश की खातिर।
पुलवामा में जो शहीद हुए ।
उन शहीदों की शहीदी पर नतमस्तक हो जाएंगे ।
वैलेंटाइन  डे नहीं .... देश प्रेम दिवस मनाएंगे ।"
काव्य -संग्रह "सप्त सिंधव भारत "के दूसरे भाग में 7 कविताएं सुशोभित हैं ।इन रचनाओं में स्वतंत्रता संग्राम में अपनी शहीदियां देने वाले, भाषा, कला और साहित्य की नींव रखने वाले तथा प्राचीन -आधुनिक कवियों के साहित्य के अभूतपूर्व योगदान की रचनाएं हैं। हमें देश की आज़ादी अंग्रेजों ने तश्तरी में रखकर नहीं दी। अतएव स्वतंत्रता- संग्राम में असंख्य ज्ञात- अज्ञात वीरों ने कुर्बानियां दी ।जेलें काटीं ।काले पानी का संताप भोगा। इसी काव्य- संग्रह से 'चंद्रशेखर आज़ाद' की रचना देखिए -
अपना नाम .....आज़ाद 
पिता का नाम ....स्वतंत्रता बताता था ।
जेल को अपना घर कहता था।
 भारत मां की.... जय -जयकार लगता था ।"
प्राचीन साहित्य के 'सूर्य -सूरदास 'ने भगवान कृष्ण के भक्ति -प्रेम और बाल- लीलाओं पर  ताउम्र जी भर कर लिखा ।कृष्ण- प्रेमियों को और साहित्य स्नेहियों को 16 ग्रंथ देकर प्रसन्न और आश्चर्य चकित कर दिया था ।श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम' जी की "साहित्य सूर्य सूरदास "की रचना देखिए -
साहित्य सूर्य सूरदास भक्ति रस की खान
"कृष्ण प्रेम के भाव में वात्सल्य रस के प्राण
ब्रजभूमि पर जीवन कर्म किया।
ब्रजभाषा में रचित साहित्य को ,
भक्ति भाषा का सम्मान दिया। "
आधुनिक समय के नामचीन साहित्यकार प्रेमचंद को भारत में ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में जाना -पहचाना और सम्माननीय स्वीकारा जाता है। इन्होंने 301 कहानियां, उपन्यास और नाटक साहित्य -जगत को देखकर मालामाल कर दिया। मुंशी प्रेमचंद को उनके उपन्यास 'गोदान' के कारण विश्व भर में उन्हें सत्कारा गया ।उन्होंने उस समय के जमीदारों, समाज की रूढ़िवादी परंपराओं और सामाजिक विसंगतियों पर अपनी रचनाओं में भरपूर चोट की।' कलम का सिपाही- कथा सम्राट प्रेमचंद' की कविता पर कर्मठ काव्य साधिका कवयित्री की इस रचना को देखिए- 
मानसरोवर के आठ भागों में
देकर कहानियों के 301 मोती, 
उस युग का महाप्राण लिखा।
कलम सिपाही प्रेमचंद ने 
मानव चरित्र का आख्यान लिखा।"
इस काव्य संग्रह के तीसरे भाग में 'पीढ़ियां और पाखंड' पर ग्यारह कविताएं हैं ।कवयित्री श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम' का जीवन बेहद अच्छे विचारों -संस्कारों में व्यतीत हुआ हैं ।जो विचार- संस्कार मां ने अपनी संतान को घुट्टी के रूप में पिलाए होते हैं, वह व्यस्क  होने पर जहां भी जाएगा- उनके अनुसार ही समाज व देश में कर्म और व्यवहार करेगा ।'बात संस्कारों की' कविता में बड़े मार्मिक शब्दों में कवयित्री ने रचना की है ।एक उदाहरण देखिए-
बात जब संस्कारों की होती है ।
जो मक्कारियां  जालसाजियां चल रही हैं ।
समाज और सिस्टम में मतलब की आंधियां चल रही हैं ।"
जिस परिवेश में बच्चों की परवरिश होती है, वह उसी के अनुसार समाज में विचरता है। जिस घर में बाप व उसके मित्रगण शराब -कबाब का सेवन करते हैं ।डींगें हांकते हैं ।झूठ फरेब की वकालत करते हैं ।उन घरों के बच्चे भी वैसे बनते हैं ।दूसरी ओर मां-बाप के अच्छे विचारों- संस्कारों से मानवीय गुणों को अपनाकर बालक अपनी जीवन - धारा को सत्य -अहिंसा ,प्रेम -करुणा और लोक कल्याण की ओर मोड़ लेते हैं ।कविता "परवरिश" में इन्हीं भाव -विचारों का प्रकटीकरण हुआ है। यथा -
'परवरिश ....बदलती है जीवन की धारा को ,
सही -गलत ,सत्य -असत्य की पहचान कराती है ।'
अतः मानव जीवन का उत्थान पतन उसे प्राणी की परवरिश पर निर्भर करता है।
राजनेता- सांसद विधानसभाओं में कानून बनाते हैं ।केंद्रीय और प्रांतीय सरकारें कानून का पालन करवाती हैं। न्यायपालिका कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा देती हैं। यानि कानून का राज। अगर कानून बनाने वाले भ्रष्ट व्याभिचारी और अवैध धंधे करने वाले होंगे तो कानून भी वैसा ही बनेंगे, इसके अनुसार देश -प्रांत के नागरिक पालन करेंगे ।और जो सिस्टम मंत्री- संतरी बना देते हैं, उनके विरुद्ध जाने वालों की खैर नहीं होती ।कविता 'सिस्टम की बात 'को देखिए- 
'जो सिस्टम से बाहर जाएगा।
अपनी अलग एक सोच रखकर।
भीड़ की मूर्खता से टकराएगा ।
सिस्टम की मशीन में ,
सबसे पहले वही काटा जाएगा।'
कवयित्री ने अपने समाज में ढोंगी फरेबी बाबा लोगों को बड़ी सूक्ष्म व पैनी दृष्टि से देखा होगा। क्योंकि वह अच्छी तरह जानती है कि अंधविश्वासों से नहीं, जीवन कठिन श्रम व लगन से संवरा करता है ।धागे -ताबीज महज ढोकसला हैं ।आज का समाज सुशिक्षित है। अतः उन्हें पाखंडी बाबाओं से परे रहना होगा ।उनकी "अंधविश्वासों से परे "नामक कविता में इसी तरह की चेतावनी पाठकों को दी गई है-
'ज़िंदगी को अंधविश्वासों से दूर ले जाता ।
प्यार से ज़िंदगी है यह बात समझा पाता।
ज़िंदगी ईश्वर की अमूल्य.... नेमत 
नहीं दे सकता.... किसी बाबा का कोई धागा।"
सप्त सिंधव भारत "काव्य संग्रह के चतुर्थ भाग में ही कविताएं हैं-  'सनातन धर्म में देवता और पितरों के प्रति श्रद्धा रखने की बात बार-बार कही गई है। जिन पूर्वजों ने हमें अच्छे विचार -संस्कार, ज्ञान ,भक्ति, सेवा और परमार्थ पर चलना सिखाया। उनके प्रति श्रद्धा होना स्वाभाविक है। श्रद्धा का दूसरा नाम पितरों के  निमित दिए जाने वाले पिंडदान व उनके प्रति दिए जाने वाले पदार्थ -वस्त्र हैं। जो लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा रखकर पितरों का श्राद्ध करते हैं ।पितर उन्हें धन्य -धान्य और घर की सुख -शांति प्रदान करते हैं ।
प्रीति शर्मा "असीम" के भाव 'श्रद्धा और श्राद्ध' में देखिए -
सत्य सनातन संस्कृति पर जो उंगलियां उठाते हैं ।
इसे ढोंगी ढपोरशंखी  बताते हैं ।
वह भरम में ही रह जाते हैं ।
आधे सच से सच्चाई तक वो.... कहां पहुंच पाते हैं ।
अब बात गंगा मैया की करते हैं। देव नदी गंगा हमारी संस्कृति, आस्था और श्रद्धा- विश्वास का सशक्त स्तंभ है ।प्राणी की मृत्यु के पश्चात्   अस्थियों को गंगा की जलधारा (कनखल) में प्रवाह करना हमारे पूर्वजों के प्रति स्नेह और श्रद्धा का प्रतीक है ।हरिद्वार में भागीरथी की 'हर की पौड़ी 'पर स्नान ,हर घर में शुभ कर्म करने  के लिए गंगाजल का प्रयोग आदि बातें हमारी आस्था व श्रद्धा का ही परिणाम है। गंगा मैया के किनारे कुंभ मेले का आयोजन और देश- विदेश से आने वाले असंख्य भक्तजन अपनी  आस्था -भक्ति के कारण गंगाजल धारा में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।
जीवित अवस्था में प्राणी जिंदगी के  सफ़र में धन-सम्मान कमाने की होड़, विषय विकारों की दल -दल में फंसा मानव क्या -से -क्या नहीं करता। श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम' के इस पर अपने विचार " गंगा "नामक कविता में देखिए-
दूसरे घाट पर, राख के ढेर के बादल 
उड़कर गंगा तेरी  ही गोद में शरण पाते हैं ।
तेरे ही प्रवाह में प्रवाहित हो जाते हैं ।
फिर उसी से नवजीवन का प्रवाह पाते हैं। 
युगों- युगों से तुम्हारे घाट जन्मों- जन्मों के 
जीवन -मरण की अमृत कथा सुनाते हैं ।"
कवयित्री श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम 'जी ने बहुत सुंदर चयनित शब्दों के मोतियों से इस रचना को माला रूप में गूंथा है। इस कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
12 राशियों से 12 जिले हैं ।
राजधानी शिमला से सजे पड़े हैं ।
राजकीय वृक्ष देवदार से ,
हिम क्षेत्र घिरे पड़े हैं ।
प्राचीन इतिहास की अमर कथा यहीं उपजी।
सिंधु घाटी की सभ्यता यहीं सहजी ।
नालागढ़ की सिरसा- सतलुज घाटी ।
व्यास ऋषि की तपोभूमि व्यास घाटी ।
सिरमौर से  सजाई मार्कंडेय ऋषि ने मारकंडा घाटी।"
सप्त सिंधव भारत 'के इस काव्य- संग्रह को पढ़कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम' जी का मनन -चिंतन अध्ययन ,भाव -विचार सागर से अतल असीम हैं ।इनकी समस्त रचनाएं सारगर्भित, राष्ट्र- प्रेम ,सांस्कृतिक, सामाजिक उत्थान- विकास और श्रद्धा- आस्था पर आधारित हैं ।इन कविताओं में रोचकता  और रवानगी है ।इस काव्य- संग्रह के प्रकाशन पर मैं श्रीमती प्रीति शर्मा 'असीम' जी को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं ईश्वर से इनके तन- मन के स्वास्थ्य और साहित्य रचना में नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने की मंगल कामना करता हूं ।
कवि, उपन्यासकार चण्ड़ीगढ़ (पंजाब)
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