देवताओं का हिमालय के पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें उमाराधन की विधि बता स्वयं भी एक सुन्दर स्थान में जाकर उनकी स्तुति करना....
और तुम्हें भी विदित है। यदि वे सती पुनः तुम्हारे घर में प्रकट हो जायें तो देवताओं का महान लाभ हो सकता है।
ब्रह्माजी कहते हैं-श्रीविष्णु आदि देवताओं की यह बात सुनकर गिरिराज हिमालय मन ही मन प्रसन्न हो आदर से झुक गये और बोले-प्रभो! ऐसा हो तो बड़े सौभाग्य की बात है। तदनन्तर वे देवता उन्हें बड़े आदर से उमा को प्रसन्न करने की विधि बताकर स्वयं सदाशिव पत्नी उमा की शरण में गये। एक सुन्दर स्थान में स्थित हो समस्त देवताओं ने जगदम्बा का स्मरण किया और बारंबार प्रणाम करके वे वहां श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे।
देवता बोले- शिवलोक में निवास करने वाली देवि! उमे! जगदम्बे! सदाशिवप्रिये! दुर्गे! महेश्वरि! हम आपको प्रणाम करते हैं। आप पावन शान्तस्वरूप श्रीशक्ति हैं, परमपावन पुष्टि हैं। अव्यक्त प्रकृति और महतत्व-ये आपके ही रूप हैं। हम भक्तिपूर्वक आपको नमस्कार करते हैं। आप कल्याणमयी शिवा हैं। आप कल्याणमयी शिवा हैं। आपके हाथ भी कल्याणकारी हैं। आप शुद्ध, स्थूल, सूक्ष्म और सबका परम आश्रय हैं। अन्तर्विद्या और सुविद्या से अत्यन्त प्रसन्न रहने वाली आप देवी को हम प्रणाम करते हैं। आप श्रद्धा हैं। आप धृति हैं। आप श्री हैं और आप ही सबमें व्याप्त रहने वाली देवी हैं। आप ही सूर्य की किरणें और आप ही अपने प्रपंच को प्रकाशित करने वाली हैं।
(शेष आगामी अंक में)