आर्थिक तंगी से त्रस्त है हिन्दी भाषी समाज के उत्थान में अहम् भूमिका निभाने वाली प्रेरणा भारती

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

एक लाख लोगों की रक्षा के लिए मात्र पांच पुलिस कर्मी तथा एक गाँव के लिए एक मात्र चैकीदार पर्याप्त होता है, जो लोगों को जगाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। लगभग 44 साल से पत्रकारिता करते हुए मैंने अखबारों का शुरू होना और यकायक बंद होते देखा है। कोविड़ के संक्रमण काल में करोड़ों मध्यम एवं निम्न प्रकार के व्यवसाय बंद हो गये, क्योंकि कोविड़ के नाम से किसी का इंसोरस नहीं था। अखबार विज्ञापन एवं बिक्री पर ही चलता है। बङे बङे मिडिया घराने आसानी से इसलिए चल रहे हैं कि उनके पास पर्याप्त विज्ञापन एवं अन्य विकल्प है। 

मैं देश के दर्जनों अखबारों से जुङा हु सबकी हालत नाजुक है। हनुमान जयंती 1998 में तत्कालीन स्वामी रामेश्वरांनंद ने हनुमान धाम तारापुर में प्रेरणा भारती का लोकार्पण किया था। जिसे मैंने एवं दिलीप कुमार ने एक रणनीति बनाकर शुरू किया। जया कम्प्यूटर तारापुर से काफी मेहनत से चार पन्ने जैसे-तैसे छपवाये। उसमें मैंने जनता से 1450 रुपये का विज्ञापन लिया। बराक हिंदी की स्थापना हमने 1 फरवरी 1998 को की थी। तुरंत ही मासिक पत्रिका निकाली गई, लेकिन किन्हीं कारणों से मैं जुड़ा रहा। आज भी हिंदी भाषी समाज की तथा अन्य खबरें भेज रहा हूँ। 

खैर मैंने उसके बाद अपने आप को हटा लिया। अखबार चला नहीं। 2003 में बराक हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष सचिव एवं कुछेक लोगों ने दिलीप कुमार को अखबार भेंट में दे दिया । खैर प्रेरणा भारती के कारण सभी हिंदीभाषी संगठनों की खबर सचित्र छपती रही, वही पूर्वांचल प्रहरी के संवाददाता के रूप में 1989 से मैं समाज को बढ़ावा देने के लिए काम करता रहा, जो आज भी जारी है। 

आज प्रेरणा भारती आर्थिक तंगी से जुझ रही है। मैं तो अपने सामथ्र्य के अनुसार रोजाना खबरों को भेजकर छपवा रहा हूँ, लेकिन संगठनों एवं विशिष्ट व्यवसायिक घरानों को मदद करनी चाहिए। यदि प्रेरणा भारती बंद हो गई तो भविष्य में कोई भी ऐसा साहस नहीं करेगा। हिंदी के दो अखबार स्थानीय एक दैनिक अखबार गोहाटी का भी बंद हो गया था, इसलिए अब समय की नजाकत समझ कर कोई आगे आना चाहे तो उनके लिए सुनहरा अवसर होगा। 

पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर (असम)

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