देवताओं का हिमालय के पास जाना और उनसे सत्कृत हो उन्हें उमाराधन की विधि बता स्वयं भी एक सुन्दर स्थान में जाकर उनकी स्तुति करना....
ब्रह्माण्डरूप शरीर में और जगत् के जीवों में रहकर जो ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सम्पूर्ण जगत् की पुष्टि करती करती हैं, उन आदि देवी को हम नमस्कार करते हैं। आप ही वेदमाता गायत्री हैं, आप ही सावित्री और सरस्वती हैं। आप ही सम्पूर्ण जगत् के लिए वार्ता नामक वृत्ति हैं और आप ही धर्मस्वरूपा वेदत्रयी हैं। आप ही सम्पूर्ण भूतों में निद्रा बनकर रहती हैं। उनकी क्षुधा और तृप्ति भी आप ही हैं। आप ही तृष्णा, कान्ति, छबि, तुष्टि और सदा सम्पूर्ण आनन्द को देने वाली हैं। आप ही पुण्यकर्ताओं के यहां लक्ष्मी बनकर रहती हैं और आप ही पापियों के घर सदा ज्येष्ठा (लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रता) के रूप में वास करती हैं। आप ही सम्पूर्ण जगत् की शान्ति हैं। आप ही धारण करने वाली धात्री एवं प्राणों का पोषण करने वाली शक्ति हैं। आप ही पांचों भूतों के सारतत्व को प्रकट करने वाली तत्वस्वरूपा हैं। आप ही नीतिज्ञों की नीति तथा व्यवसाय रूपिणी हैं। आप ही सामवेद की गीति हैं। आप ही ग्रन्थि हैं। आप ही यजुर्मन्त्रों की आहुति हैं। ट्टग्वेद की मात्रा तथा अथर्ववेद की परम गति भी आप ही हैं। जो प्राणियों के नाक, कान, नेत्र, मुख, भुजा, वक्षःस्थल और हृदय में धृतिरूप से स्थित हो सदा ही उनके लिए सुख का विस्तार करती हैं, जो निद्रा के रूप में संसार के लोगों को अत्यन्त सुभग प्रतीत होती हैं, वे देवी उमा जगत् की स्थिति एवं पालन के लिए हम सब पर प्रसन्न हों। इस प्रकार जगज्जननी सती साध्वी महेश्वरी उमा की स्तुति करके अपने हृदय में विशुद्ध प्रेम लिए वे सब देवता उनके दर्शन की इच्छा से वहां खड़े हो गये।
(शेष आगामी अंक में)