बैंकिंग व्यवस्था फ्रॉड और षड्यंत्रकारी

एडवोकेट अलप भाई पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आज तक जितने भी आंदोलन करने वाले हुए, सबने व्यवस्था परिवर्तन की बात की पर परिवर्तन तो हुआ, लेकिन सत्ता परिवर्तन और शायद व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर बात भी सत्ता परिवर्तन की ही हुई। जब-जब व्यवस्था परिवर्तन की बात हुई इस देश की जनता ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और आंदोलन को सफल बनाया, पर आंदोलन से कुछ लोग तो नेता बन गए और सत्ता का खूब लाभ उठाया और इस देश की गरीब और शोषित जनता हर बार ठगी गई, क्योंकि आवाज तो व्यवस्था परिवर्तन के लिए उठाई गई थी, पर हुआ क्या सिर्फ सत्ता परिवर्तन......

व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर सत्ता परिवर्तन हुआ और उसी सत्ता परिवर्तन में वही व्यवस्था जो शोषणकारी थी। वही व्यवस्था जो दमनकारी थी, वही व्यवस्था, जो हमें हमारे जमीनों से अलग करने के लिए बनाई गई थी। वही व्यवस्था जो हमें हमारे खेत खलिहान से अलग करने के लिए बनाए गए थे, वही व्यवस्था जो हमें हमारे जंगलों से अलग करने के लिए बनाए गए थे, वही व्यवस्था जो हमें हमारे पड़ोसी नातेदारों से अलग करने के लिए बनाए गए थे, वही व्यवस्था जो हमें हमारे जानवर से अलग करने के लिए बनाए गए थे।

आज जो भी कुछ सुख सुविधा या और कुछ हमारे अगल-बगल या आसपास दिख रही हैं। यह सारी चीजें उसी षड्यंत्रकारी व्यवस्था की हिस्सा है, जिसने हमारे जल जंगल जमीन और जानवर तक को दूषित किया या करने का कार्य कर रही है। आज फिर हमें अपनी पुरानी व्यवस्था पंचायती राज व्यवस्था वापस लानी होगी और उसे लागू करना होगा, जिसमें हमें किसी भी पंचायत पर किसी भी बाहरी सरकारी तंत्र (शोषणकारी या षड्यंत्रकारी) का कोई भी किसी भी तरह का कानून न कम करें और ना ही इनका हस्तक्षेप हो। पंचायत की जमीनी पुनः पंचायत को वापस दी जाए, जो षड्यंत्र कारी कानून द्वारा पंचायत की जमीन सरकारी तंत्र को सौंप दी गई थी। पंचायत में किसी भी मामले को निपटने के लिए पंचायत के लोग ही आपसी सहमति और भाईचारे से आपसी मामले, जल, जंगल, जमीन और जानवर के मामलों का निपटारा किया जाए।

आज शोषणकारी या षड्यंत्रकारी व्यवस्था लागू होने से हर एक परिवार इनके सरकारी षड्यंत्रों में फंस चुका है और अपनी अंतिम सांस ले रहा है। पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के साथ-साथ वस्तु विनिमय वाली व्यवस्था भी लागू होनी चाहिए। जब से हमने वस्तु विनिमय वाली व्यवस्था को खो दिया या त्याग कर दिया और अनावश्यक जरूरतों के मकड़जाल में षड्यंत्र कारियों द्वारा फंसा दिया गया, जिससे हमने धीरे-धीरे अपनी वस्तु विनिमय वाली व्यवस्था का त्याग कर दिया और इसी कारण से हमें षड्यंत्रकारी करेंसी की जरूरत पड़ने लगी षड्यंत्रकारी व्यवस्था की जरूरत पड़ने लगी। 

बैंकिंग व्यवस्था षड्यंत्रकारी व्यवस्था का सबसे बड़ा और अहम हिस्सा है। इसी व्यवस्था से हम सबको हमारी जमीनों से बेदखल किया जा रहा है। बैंकिंग व्यवस्था हमारे लिए सबसे घातक क्यों है, बैंक बैंकिंग व्यवस्था का निर्माण ही हमें हमारी जमीनों से अलग करने के लिए किया गया है। हमें कभी भी बैंकिंग व्यवस्था की जरूरत नहीं थी हम सब के पूर्वजों ने हमेशा वस्तु विनिमय वाली व्यवस्था को फॉलो किया साथ ही अगर कभी किसी और प्रकार की जरूरत की जरूरत पड़ी तो चांदी और सोने के सिक्कों का प्रयोग किया, जो की वास्तविक तौर पर चांदी और सोने के सिक्के ही हमारे वास्तविक करेंसी यह रुपया था।

हम सबको यह पता होगा कि हमारे बुजुर्गों द्वारा यह बताया जाता है कि इस नोट के पीछे जो नोट हम सबके पास है, उसके वैल्यू के हिसाब से सोना रखा हुआ है और एक रुपए की करेंसी को बनाने के लिए 777 मिलीग्राम सोना रखा जाता है। जब पेपर नोट आए तो उस पर एफिडेविट के तौर पर प् च्तवउपेम ज्व च्ंल ज्ीम ठमंतमत ज्ीम ैनउ व् ि..... त्नचममे व्द क्मउंदक ।ज ।दल व्ििपबम व् िप्ेेनम लिखा हुआ था, जो आज भी आपको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वेबसाइट पर मिल जाएगा। पर फिर एफिडेविट में बदलाव करके प् च्तवउपेम ज्व च्ंल ज्ीम ठमंतमत ज्ीम ैनउ व् ि....... त्नचममे कर दिया, जो की एक क्राइम है। आप कभी भी किसी एफिडेविट को बदल नहीं सकते कुछ बढ़ा जरुर सकते हैं, पर यहां तो एफिडेविड हीं बदल दिया गया है। और यह एफिडेविट इसलिए बदला गया है कि कोई भी व्यक्ति यह क्लेम ना कर सके कि हमारा सोना दो, क्योंकि पहले के एफिडेविट में यह लिखा हुआ था कि  वद कमउंदक ंज ंदल वििपबम व िपेेनम जो आज के नोट में नहीं मिलता और बैंकों के पास 2014 से पहले लगभग 14 लाख करोड़ के पेपर करेंसी थी, जो 2014 के बाद 18 लाख करोड़ के पेपर करेंसी छापी गई, जो कुल मिलाकर 34 लाख करोड़ हुई इसी कारण महंगाई बेतहाशा बड़ी और जमीनों के रेट भी बेतहाशा बढ़ते गए, क्योंकि जो बाकी पेपर करेंसी की छपाई हुई है या बनाई गई है, उसके पीछे मानक के तौर पर गोल्ड (सोना) नहीं रखा गया है।

इन 34 लाख करोड़ में से जो पेपर करेंसी अभी मौजूद है, उनमें से 4.8 लाख करोड रुपए ही ऐसा रुपया है, जिसके पीछे मानक के तौर पर गोल्ड (सोना) रखा गया है। बाकी के 29.2 लाख करोड रुपए क्या है। आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं, इनके पीछे किसी भी प्रकार का कोई भी मानक गोल्ड (सोना) नहीं रखा हुआ है। इसके बावजूद भी बैंक सभी को लोन बांट रहा है। कहीं किसी से लोन कहीं कार लोन कहीं पर्सनल लोन कहीं बिजनेस लोन और न जाने किन-किन प्रकार के लोन बांट रहा है की अधिक से अधिक लोन ले लो, जबकि किसी भी बैंक के पास ना ही अपनी जमीन है ना ही कार है ना कोई अन्य सामान जैसे कंप्यूटर आदि सब मिल यह सारी सामान किराए पर लिए हुए हैं और बैंक हमें हर एक समान लेने के लिए लोन बांट रही है और उसे लोन के बदले में हमारे जमीनों के कागजात घरों के कागजात गाड़ी के कागजात यह सब उनके पास गिरवी या बंधक रखा हुआ है।

बैंकों ने अभी तक कुल 170 लाख करोड़ का लोन बांट रखा है और देश के पास कल करेंसी मानक गोल्ड (सोन) रखा हुआ। 4.8 लाख करोड़ और बगैर मानक गोल्ड (सोन) रखा हुआ। 29.2 लाख करोड रुपए है। दोनों मिलकर मानक गोल्ड (सोना) रखा हुआ और बगैर मानक गोल्ड (सोना) रखा हुआ। कुल 34 लाख करोड़ की करेंसी मौजूद है और 170 लाख करोड़ कर्ज दिया हुआ है। करेंसी 34 लाख करोड़ की और कर्ज 170 लाख करोड़ का फिर किसी न किसी का कुछ ना कुछ तो जाएगा ही चाहे जमीन चली जाए, चाहे मकान चली जाए, चाहे दुकान चला जाए, चाहे गाड़ी मोटर या कुछ और चला जाए कुछ तो जाना ही है या बैंक उसे पर कब्जा ही ले लेगा, जो बैंकों के अधीन गिरवी रखी हुई है।

बैंकिंग व्यवस्था हवा में भी करेंसी बनाने का कार्य करती है, जो व्याज का पैसा है उसे बनाने के लिए किसी भी प्रकार का कोई भी मानक गोल्ड (सोना) नहीं रखा गया, फिर व्याज का पैसा हवा में बनाया हुआ पैसा ही हुआ न। उदाहरण के तौर पर मैंने सौ सौ रुपए कि पांच नोट बनाई और 777 मिलीग्राम प्रति रुपया गोल्ड (सोना) मानक के तौर पर रखा और फिर मैंने उसी सौ-सौ के पांच नोटों को पांच लोगों में वितरित कर दिया या दें दिया तो मेरे पास शून्य बचना चाहिए और मुझे जब भी वापस मिलेगा तो वहीं सौ सौ के पांच नोट ही मिलेंगे। 

नोट तो हमने पांच ही बनाएं पर वापसी भी मुझे पांच नोट ही मिलने चाहिए, पर व्याज वाली व्यवस्था के तहत मुझे ज्यादा नोट मिलेंगे पर नोट तो हमने पांच ही बनाएं थें। इन्हीं सब कर्म को ध्यान में रखते हुए बैंकों ने या बैंकिंग सिस्टम ने यह निर्णय लिया है कि कुछ समय बाद डिजिटल करेंसी ला करके सारे पेपर करेंसी को खत्म कर देंगे, जिससे उनकी जो गर्दन फंसी हुई है। एफिडेविट को बदलने की वह बच जाएगी और दूसरी पेपर करेंसी के कोई भी नियम कानून डिजिटल करेंसी पर लागू नहीं होंगे, जिससे लोगों के जमीन मकान दुकान घर जान ही जाने वाले हैं और साथ ही जितने भी बैंक और बैंक कर्मचारी है। वह बेरोजगार और खत्म हो जाएंगे, क्योंकि डिजिटल करेंसी का सीधा संबंध सेंट्रल बैंक से होगा देश में सिर्फ एक ही बैंक होगा, आरबीआई कह लीजिए या सेंट्रल बैंक कह लीजिए। जैसे ही पेपर करेंसी खत्म होती है और डिजिटल करेंसी पूर्ण रूप से प्रचलन में आती है, वैसे ही देश भयावह आर्थिक संकट की तरफ अग्रसर हो जाएगा। भयावह बेरोजगारी की तरफ अग्रसर हो जाएगा, इसलिए इन सब चीजों से बचने के लिए हम सबको पुनः पंचायती राज व्यवस्था को लाना होगा और पुनः वस्तु विनिमय वाली व्यवस्था को लागू करना होगा या लाना होगा जिससे हम सबके जल जंगल जमीन जानवर बचाए जा सके या यह करें इंसानियत और इंसान को बचाया जा सके।
हाईकोर्ट इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

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