मानवता कराह रही है
मदन सुमित्रा सिंघल , शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। कहीं गर्मी से तो कहीं पानी से पृकृति कहर ढा रही है अपने पङोसी देश में मानवता कराह रही है क्या कसुर इन मासुमो का ना किसी से लेना देना खाये दो समय रोटी वो भी छीनी जा रही है मानवता कराह रही है नारी का गहना अस्मत सरे आम लूटी जा रही है जला रहे दरिंदे दुक…