शिवपुराण से....... (236) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता (प्रथम सृष्टिखण्ड़)


शिवपूजन की विधि तथा उसका फल........


गतांक से आगे............
इनमें दतुअन नहीं करनी चाहिए। दतुअन के पश्चात तीर्थ (जलाशय) आदि में जाकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए, विशेष देशकाल आने पर मंत्रोच्चारण पूर्वक स्नान करना उचित है। स्नान के पश्चात पहले आचमन करके वह धुला हुआ वस्त्र धारण करें, फिर सुन्दर एकांत स्थल में बैठकर संध्याविधि का पालन करके पूजा का कार्य आरम्भ करें।
मन को सुस्थिर करके पूजा गृह में प्रवेश करें। वहां पूजन सामग्री लेकर सुन्दर आसन पर बैठें। पहले न्यास आदि करके क्रमशः महादेवजी की पूजा करें। शिव की पूजा से पहले गणेशजी, द्वारपालों और दिक्पालों की भी भलीभांति पूजा करके पीछे देवता के लिए पीठ स्थान की कल्पना करें अथवा अष्टदलकमल बनाकर पूजा द्रव्य के समीप बैठें और उस कमल पर ही भगवान् शिव को समासीन करें। तत्पश्चात तीन आचमन करके पुनः दोनो हाथ धोकर तीन प्राणायाम करके मध्यम प्राणायाम अर्थात कुम्भक करते समय त्रिनेत्रधारी भगवान् शिव का इस प्रकार ध्यान करें-उनके पांच मुख हैं, दस भुजाएं हैं, शुद्ध स्फटिक के समान उज्जवल कान्ति है, सब प्रकार के आभूषण उनके श्रीअंगों को विभूषित करते हैं तथा वे व्याघ्रचर्म की चादर ओढ़े हुए हैं। इस तरह ध्यान करके यह भावना करें कि मुझे भी इनके समान ही रूप प्राप्त हो जाये। ऐसी भावना करके मनुष्य सदा के लिए आने पाप को भस्म कर डाले। इस प्रकार भावना द्वारा शिव का ही शरीर धारण करके उस परमेश्वर की पूजा करें। शरीर शुद्धि करके मूलमंत्र का क्रमशः न्यास करें अथवा सर्वत्र प्रणव से ही षडंग न्यास करें।         (शेष आगामी अंक में)


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