सुनिता ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
सींचा है इसे हजारों ऋषि-मुनियों ने ज्ञानसागर से,
तभी ये धरती तपोभूमी कहलाई जाती है।
ये देश है संत कबीर का,
जहाँ 'अमृतवाणी' गाई जाती है।
ये जन्मभूमि है वेद व्यास की,
जहाँ कसम 'गीता' की खाई जाती है।
ये कर्मभूमि है वाल्मीकि की,
जहाँ घर-घर रामायण सुनाई जाती है।
फिर क्यू इस पावन धरा पर
खून बहा सन्यासियों का।
इस कुकृत्य से क्यूँ नही हृदय काँपा
उन हत्यारे अधमी पापियों का।
पावन आत्मा, हृदय में परमात्मा
वे संत सच्चे भारतवासी थे।
न थे जेहादी न थे रोहिग्यां
वे भगवावस्त्रधारी सन्यासी थे।
कैसे ये धरा उन पावन देह की
हत्या से मुक्त हो पाएगी।
उठो जागो भारतवंशियों
मौन से जंग अब न जीती जाएगी।
राह चुनों परशुराम की
सन्नातनधर्म का प्रचार करो।
सम्मान करो साधु संतों का
गौ माता से प्यार करो।
गॉव काम्बलू, तहसील करसोग, जिला मंण्डी हिमाचल प्रदेश
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