शि.वा.ब्यूरो, अलीगढ़। केंद्र सरकार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उस दावे को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया था, कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनाॅरिटी संस्था की केटेगरी में नहीं रखा जा सकता।
अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जस्टिस जेएस शेखर, जस्टिस एमवाई इकबाल और जस्टिस सी नगप्पन की बेंच को बताया कि भारत सरकार का मत है कि अलीगढ यूनिवर्सिटी माइनाॅरिटी यूनिवर्सिटी नहीं है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और हम यहां माइनाॅरिटी संस्था का गठन होते हुए नहीं दिखना चाहते। हालांकि यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह ने कहा है कि संस्थान का अल्पसंख्यक चरित्र यूनिवर्सिटी के लिए जीने-मरने का सवाल हैै। ज्ञात हो कि 1920 में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल काॅलेज को भंग कर एएमयू एक्ट लागू किया गया था। संसद ने 1951 में एएमयू संशोधन एक्ट पारित कर इसके दरवाजे गैर मुसलमानों के लिए भी खोल दिए गए। इसके बाद 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा केस में एक अहम फैसला देते हुए कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी माइनाॅरिटी संसथान नहीं है, क्योंकि इसका गठन संसद में कानून के जरिए हुआ है न कि मुसलमानों द्वारा। इसके बाद 1981 में तत्कालीन सरकार ने संसद में एक संशोधन पारित कर एक तरह से एएमयू को माइनाॅरिटी टैग वापस कर दिया, लेकिन मामला एक बार फिर कोर्ट पहुंचा जब 2004 में एएमयू ने 50 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटों को मुसलमानों के लिए अरक्षित कर दिया गया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया गया। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, एएमयू ने दलील दी कि वह एक माइनाॅरिटी संस्था है। वाइस चासंलर ने कहा है कि अल्पसंख्यक चरित्र का ताल्लुक मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक पिछड़ेपन को कम करने से है। एएमयू ने केंद्र सरकार के इस दलील को चुनौती देने का फैसला किया है। यूनिवर्सिटी के मुताबिक केंद्र सरकार ने वर्ष 1981 में एएमयू संशोधन एक्ट पास किया, जिसमें कहा गया है कि ये यूनिवर्सिटी मुस्लिम समुदाय द्वारा बनाई गई है।
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