जाने क्यों लिखता हूं मैं 

रमेश डोभाल,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

जाने क्यों लिखता हूँ मैं

मुझे कुछ पता नहीं 

 

कलम की निब 

कांटा बनकर

छेदती है दिल को 

मोम समझकर

क्यों घायल करती

ये भावनाएं मुझे 

शब्दों के तीर बनकर

इस दिल से पूछा हूँ 

यह भी बताता नहीं

जाने क्यों........

 

लिखते-लिखते

ढ़ेर लग गये

राहों के फेर

लग गये

यहां-वहां की संवेदनाएं 

देती है अहसास

दिल को चुभती

गुजरती जब पास

सिर्फ लिख पाता

बोल पाता ही नहीं

जाने क्यों........

 

कहां से यह भावनाएं 

आती है अपार

दूर तक देखा 

छितिज के पार

छोर को पकड़ने

की कोशिश करता

पर पकड़ 

पाता ही नहीं

जाने क्यों........

 

        

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