रमेश डोभाल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
यों हश्र न होता
अरमानों का
जिंदगी न डूबती
घूटों में
जाम ही जाम में
जहर पीया
चुस्कियां बनकर
होठोँ में
हर रात
के सपने
भोर हुए
दिन पहर
परवान हुए
शाम को
जाम में
छलक गये
घूंट पे घूंट
जब
हलक गये
हो गयी जिंदगी
काली रातें
चीखते घर
और
कोरी बातें
शमसान सी
घर की किलकारियां
सूखता तन
बढ़ती जिम्मेदारीयां
हुई जिंदगी
पूरी धराशायी
जामों मे डूबी
पूरी अलशाय
एक ही जीवन
एक ही वजूद
डूबे, रोये और पछताय
देहरादून, उत्तराखण्ड़
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