राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार माता छिन्नमस्तिका चंडी रूप में दैत्यों का संहारक करने वाली शक्ति के रूप में प्रसिद्ध है। माता छिन्नमस्तिका दशमहाविद्याओं में एक विशिष्ट पद पर प्रतिष्ठित होकर सर्वजगत में पूज्य हैं। इनकी साधना, आराधना, पूजा भक्ति से साधकों के सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। विपक्षी दल वाक शून्य होकर हत प्रत होकर रह जाते हैं। लेखन के क्षेत्र में एवं वाक पटुता को सुदृढ आधार छिन्नमस्तिका माता ही प्रदान करती है। वैशाख मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि को माता छिन्नमस्तिका भगवती का प्रादुर्भाव (प्राकट्य) हुआ था। इस वर्ष 6 मई को देश के विभिन्न स्थानों में माता छिन्नमस्तिका जन्मोत्सव मनाया जाएगा, परन्तु लॉकडाउन के चलते पूजन आराधना घर पर ही करना श्रेयकर रहेगा।
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम।
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम।।
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम।
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम।।
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम।
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम।।
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम।
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:।।
पुराणों के अनुसार ऋषि याज्ञवल्क्य एवं भगवान परशुरामजी दशमहाविद्याओं के अंतर्गत छिन्नमस्तिका के परम उपासक थे। वैरोचन भी माता छिन्नमस्तिका के आराधक थे। इसी कारण वज्रवैरोचन शक्ति से भी माता विभूषित है।
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्नमस्तिके।
प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्।
यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:।।
माता छिन्नमस्तिका के प्राकट्य काली तन्त्र के अनुसार इस प्रकार वर्णित है-
एक समय माता जगदम्बा मंदाकिनी के शीतल जल में स्नान हेतु जय और विजया (निज नित्य सेविकाओं) के साथ गयी। माता जगदम्बा स्नान में इतनी निमग्न हुई कि समय का भान ही नहीं रहा। इसी बीच देवी की दोनो सेविकाओं को आदिशक्ति की लीलामयी माया के कारण बड़ी तीव्र भूख लगी। उन्होंने माता से भूख मिटाने का आग्रह किया। माता ने प्रतीक्षा करने के लिए कहा। ऐसा भी वर्णन आता है कि भूख के कारण दोनों सहचारियों की देह कृष्ण वर्णीय (काले रंग से युक्त) हो गयी। जब जय और विजया भूख से बहुत ही व्याकुल हो उठी तो माता से पुनः विनती की। माता जगदम्बा ने अविलम्ब दिगम्बर रूप धारण करके खड्ग से निज मस्तक को काट दिया, उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएं बहने लगी। इससे उनकी भूख शांत हो गयी। मस्तक को धड़ से विछिन्न करने के कारण माता छिन्नमस्तिका नाम से जग में विख्यात हो गयी।
संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश