मां-बाप और बच्चे


वंदना भटनागर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 


पति - पत्नी से बन मां-बाप हम बहुत हर्षाते हैं

देख बच्चे को सारे दुःख दर्द भूल जाते हैं

ना हो बाल बांका ज़रा भी यही भगवान से मनाते हैं

बच्चे के दुःख में दुःखी और खुशी में खुश हो जाते हैं

पाई -पाई जोड़कर उसके भविष्य के लिए बचाते हैं

इस फेर में ना जाने कितनी हसरतों को अपनी कुचल जाते हैं

पर बना काबिल इंसान उसे दिली-सुकून पाते हैं

सार यही ,बच्चे ही केंद्र उनकी धुरी का बन जाते हैं

और बच्चे करके शादी एक नयी ही दुनिया बसाते हैं

वाइफ इज़ माई लाइफ या हबी माई जान कह इतराते हैं

उनके लिए अब पार्टनर पहले और मा-बाप गौण हो जाते हैं

बनाकर नये-नये बहाने मां-बाप को बरगलाते हैं

पता नहीं कैसे बच्चे मां-बाप को दरकिनार कर पाते हैं

माना ,बच्चे है ज़िन्दगी मां-बाप की पर क्यों उनपर ही अटक जाते हैं

बढ़ गए बच्चे आगे, आप ही क्यों पीछे रह जाते हैं

दो स्पेस बच्चो को, करो शौक पूरे अपने जो कभी छोड़ दिए जाते हैं

 

मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश


Post a Comment

Previous Post Next Post