नारी तुम बिन अधूरी सारी सृष्टि



राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 


ब्रह्मांड जलमय था तब विचार किए जगदम्बा।

कैसे सृष्टि सृजन करूं मैं विचार में खोई अम्बा।।

 

था चहुं ओर नीर ही नीर नारी तत्व ये प्रधान।

तब शक्ति ने चेतन किए जगतपति भगवान।।

 

अनंतानंत सृष्टि रचे नाग किन्नर यक्ष विद्याधर।

एक एक सब सृजन करें तब विधाता प्रभुवर।।

 

आतुर व्याकुल चहुं ओर निहारत शक्ति को सब।

कैसे हो सृष्टि का उत्कर्ष करें विचार सब देव तब।।

 

मन में जगदम्बा विधाता के तब प्रेरणा जगा गए।

ममता से भर दिया नारी को ऐसा सृजन कर गए ।।

 

थी सृष्टि अधूरी जब तक नारी की न थी कल्पना।

अम्बा का स्वरुप धरा पर अस्तित्व लिए अपना।।

 

करो न जुल्म वरना सृष्टि में सब धरा का धरा रहेगा ।

न युग से पहले इसके बिना कुछ था न फिर होगा।।

 

नारी बिना अधूरा सब ,रचे युग के नवीन योग-संयोग।

रुप एक से अनेक धरें पल पल उत्कर्ष में करें सहयोग ।


 

संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश


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