कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जर्मनी के.महान समाज सेवी ओवरलीन अपनी यात्रा के दौरान एकबार भयंकर तूफान में फँस गये। तेज तूफानी आँधी और ओलों ने उन्हें घायल और बेहाल कर दिया। वह मदद के लिये चिल्लाते रहे, लेकिन सबको अपनी अपनी जान बचाने की पडी़ थी, ऐसे में उनकी कौन सुनता? वे बेहोशी की हालत में.नीचे गिरकर अचेत हो गये। कुछ देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि किसी ने उन्हें थामा है और सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास कर रहा है। होश आने पर ओवरलीन ने देखा कि एक गरीब किसान उनकी सेवा में लगा हुआ है।
ओवरलीन ने किसान से कहा-वह उसकी जानबचाने और सेवा के एवज में ढे़र.सा धन इनाम में देंगे। उन्होंने किसान से नाम जानना चाहा। यह सुनकर किसान मुस्कारिया और बोला-बताइये! बाइबिल में कहीं किसी परोपकारी का नाम लिखा है? नहीं न।... तो फिर मुझे भी अनाम ही रहने दो। आप भी तो निःस्वार्थसेवा में विश्वास करते हो और मुझे इनाम का लालच दे रहे हो। सेवा भावना तो अन्दर से उत्पन्न होती है, लालच से नहीं। ओवरलीन उस निर्धन किसान की बात सुनकर दंग रह गये। सेवा जैसा भाव तो अनमोल है। उसकी कोई कीमत नहीं है। सच्ची सेवा के लिये निःस्वार्थ होना जरूरी है। यह पाठ आज किसान ने उन्हें ठीक से समझा दिया। ईनाम का लालच देने के लिये उन्होंने किसान.से क्षमां माँग ली।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ