कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
किसी गांव में एक साधु रहता था, जो दिन भर लोगों को उपदेश दिया करता था। उसी गांव में एक नर्तकी रहती थी, जो नाच-गाकर लोगों का मन बहलाया करती थी। संयोग से दोनों की मृत्यु एक ही दिन हुई। इनके कर्मों और उनके पीछे छिपी भावनाओं के आधार पर स्वर्ग या नरक दिए जाने की बात कहीं गई। साधु आश्वस्त था.कि वह तो स्वर्ग ही जाएगा, क्योंकि उसने जीवन भर लोगों को सत उपदेश दिए थे, जबकि नर्तकी अपने मन में ऐसा कुछ भी नहीं सोच रही थी। हाँ उसे भी फैसले का इंतजार था। तभी घोषणा हुई कि साधु को नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। यह फैसला सुनकर साधु ने गुस्से में यमराज से कहा-यह कैसा न्याय है महाराज? मैं जीवन भर लोगों को सद् उपदेश देता रहा और बदले में मुझे नसीब क्या हुआ? जबकि यह स्त्री जीवन भर लोगों को रिझाने के लिए नाचती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है, ऐसा क्यों? यमराज ने शांत भाव से उत्तर दिया-यह नर्तकी अपना पेट भरने के लिये नाचती थी, लेकिन इसके मन में यही भावना रहती थी, कि मैं अपनी कला ईश्वर के चरणों में समर्पित कर रही हूं, जबकि तुम उपदेश देते हुए भी यह सोचते थे कि काश ! तुम्हें भी नर्तकी का नृ्त्य देखने को मिल जाता। तुम शायद ईश्वर के इस महत्वपूर्ण संदेश को भूल गए कि इंसान के कर्मों से अधिक कर्म करने के पीछे की भावनाएं ही ज्यादा मायने रखती हैं। अतः तुम्हारी जगह नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ