कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
अरब देश दमिश्क में एक बार भयंकर अकाल पड़ा। लम्बे समय से आसमान से एक बूँद पानी ना बरसा। खेत, बाग, हरियाली, जंगल सब सूख गए। बिन पानी सब सून, पेड़ फकीरों के जैसे कंगाल हो गये। बचे-खुचे खेत टिड्डियों ने चाट डाले। इन्सान और जानवर भूखों मरने लगे। इत्तिफाक से संत शेख सादी उन दिनों दमिश्क में ही थे। एक दिन उनसे मिलने उनका एक मित्र आया। उसकी हड्डियों पर केवल खाल बाकी रह गई थीं। उसे देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह एक बहुत अमीर आदमी था। उसके पास बीसियों घोड़े और आलीशान हवेलियाँ थी।
शेख सादी ने उससे पूछा-तुम्हारी यह हालत कैसे हो गई? वह बोला-आपको तो मालूम ही है कि कितना भयंकर अकाल पड़ा है। हजारों लोग भूख से मर रहे हैं। सादी ने कहा-तुम्हें इससे क्या मतलब? तुम बहुत अमीर व्यक्ति हो। ऐसे सैकड़ो अकाल पडे़, तुम पर तब भी कुछ असर नहीं पड़ेगा। उनका दोस्त बोला-आपका कहना दुरुस्त है, मगर सच्चा इन्सान वही है, जो दूसरों के दुःख को समझे। जब मैं सैकड़ो लोगों को फा़का करते देखता तो मेरे मुँह में खाने का एक निवाला भी नहीं उतरता था, इसलिये मैंने अपनी सारी धन, दौलत, सम्पत्ति भूखों, गरीबों, जरूरतमन्दों में बाँट दी। शेख सादी को अपने दोस्त में अचानक एक फरिस्ता नज़र आने लगा। उन्होंने ऊपर दुआ के लिये अपने हाथ उठाये और अपने दोस्त को गले लगा लिया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
Tags
social