मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कभी जो थे मासूम से सूने-सूने बादल।
अब दिखा रहे तरह-तरह के रंग बादल।।
झमा-झम-झम झड़ी लगा रहे।
तड़ा-तड़-तड़ बिजली चमका रहे।।
कभी छोटीं तो कभी बड़ीं-बड़ीं बूंदें।
सुन गड़-गड़ की ध्वनि बच्चे आँखें मूंदें।।
जब जोर-शोर से बरसे पानी।
छतरी खोल बाहर निकले नानी।।
सर-सर-सररर हवा चले पुरवाई।
टीनू-मीनू ने कागज की नाव चलाई।।
बागों में नन्हीं-नन्हीं कलियां मुस्काई।
मेढ़क दादा ने टर्र-टर्र की टेर लगाई।।
कीट-पतंगों के जीवन में बहार आयी।
खेतों में चहुंदिशि हरियाली छायी।
कीचड़ की लपटा-लपटी से बेहाल।
मामाजी की बदल गई है देखो चाल।।
वर्षा रानी आती हैं, थोड़ी-बहुत समस्या लाती हैं।
पर धरती के जीवन में नव प्राण भर जाती हैं।।
रिहावली डाक तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा 283111
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