अशोक काकरान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भारत के लोकतंत्र और इसकी लीडरशिप पर गर्व कीजिए। इसकी कानून व्यवस्था पर गर्व कीजिए। कोई अपराधी तो छोटे से अपराध में भी जेल की सलाखों से बाहर नहीं आ सकता तो कोई दुर्दांत किस्म का अपराधी होकर भी उम्रकैद की सजा होने के बाद भी आजाद घूम सकता है। पुलिस मुठभेड़ में कभी चोर उच्चक्के जैसे मामूली अपराधी भी मौत की नींद सुला दिए जाते हैं तो कभी 60 मुकदमे दर्ज होने वाले कातिल और खूंखार अपराधी का बाल भी बांका नहीं होता। खूंखार अपराधी होने के बाबजूद चुनाव भी लड़ लेता है और जीत भी जाता है। राजनीतिक दलों में सम्मान पाकर फिर वरिष्ठ नेता भी लिखा जाता है। ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन पर भारी भरकम इनाम घोषित होने के बाद भी राजनीति में पारी खेली गई है और खेली जा रही है।
जिस कुख्यात अपराधी दुबे ने पुलिस पर हमला करके 10 पुलिसकर्मियों की जान ले ली, उस दुबे को समाज और पुलिस जैसे सहन करते आ रहे थे। समाज की तो मजबूरी थी कि उसको डर था अपनी जान और परिवार का, लेकिन पुलिस को क्या डर था उसका? क्यो अब तक सुरक्षित है वह? यह भी सही है कि पुलिस और राजनीति के आशीर्वाद से दुबे जैसे बहुत सारे खूंखार अपराधी शान की जिंदगी जी रहे हैं। जेलों में बंद होकर भी उनकी मौज बनी रहती है। लोगो को मारकर, आतंकित करके, लूटकर मजा लेने वाले अपराधी लोगो को आजाद रहने का कोई कारण नही है लेकिन रहते हैं। अब पुलिस सब कुछ कर रही है। मकान नष्ट किया, कारे और ट्रैक्टर नष्ट किये। अब से पहले इस समाज के नाशूर को उसके सही ठिकाने पर पहुंचा दिया जाता तो आज पुलिस की इतनी जनहानि नही होती। सरकार और सिस्टम की छिछलेदारी ना होती। कानून व्यवस्था पर इतने सारे सवाल ना खड़े किए जाते। मित्र ने एक बहुत काम की बात कही कि हमारे देश में क्रिया की प्रतिक्रिया बहुत जल्द होती है लेकिन जल्द ही चीजे भुला दी जाती हैं। दुबे जैसे बहुत और दुर्दांत अपराधी है देश मे, जिनको जिंदा रहने देने का मतलब है कि उनके ख़ौफ़ को जानबूझकर बढ़ने दिया जा रहा है।