गुणा कुछ भी नहीं

अ कीर्ति वर्द्धन,शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। है पढ़ा हमने बहुत कुछ, पर गुणा कुछ भी नहीं, खोले बहुत ऊन गोले, पर बुना कुछ भी नहीं। करता रहे सानिध्य, गुणीजनों- सन्तों का सदा, बात बस अपनी सुनाई, पर सुना कुछ भी नहीं। खुद को माना श्रेष्ठ, और अहम में उलझे रहे, सत्य को भी झूठ जाना, बहम में उलझे रहे। गूढ़ रहस्य सनातन के, शास्त्रों में लिखे गये, सार को समझ सके न, जहन में उलझे रहे। मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

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