मुकेश कुमार ऋषि वर्मा,शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
इस सुंदर जग को ईश्वर ने बड़े ही प्रेम से बनाया है। जगत में भिन्न-भिन्न जीव जंतु ईश्वर का अद्भुत निर्माण हैं, परंतु सबसे अलग जो निर्माण ईश्वर ने किया है, वह मनुष्य नामक प्राणी का है। संसार में प्रत्येक प्राणी की एक सीमित क्षमता है,लेकिन मनुष्य असीम क्षमता वाला प्राणी है। मनुष्य ने अपना विकास एक निश्चित समय सीमा से कहीं ज्यादा किया है। कुछ मनुष्य इंसान के भेष में शैतान होते हैं और कुछ मनुष्य देवता तुल्य होते हैं। शुरू से ही प्रकृति का नियम रहा है कि दिन-रात, धर्म- अधर्म, सुख-दुख, शैतान- इंसान हमेशा साथ-साथ फले-फूले हैं, इनमें कभी बनती नहीं और ये कभी एक दूसरे से अलग भी नहीं हो सके हैं।
अगर हम इंसानों की बात करें तो इनमें बहुत बड़े-बड़े अवतार पुरुष पैदा हुए हैं, उन्हीं में से एक हैं कबीर। कबीर अपने युग के सबसे बड़े लोकोपदेशक रहे हैं, उनका साहित्य अमर है। कबीर का जन्म विक्रमी संवत 1455 (सन-1398 ई.) वाराणसी में हुआ था, उनकी मृत्यु विक्रमी संवत 1551 (सन्- 1494 ई.) मगहर में हुई थी। कबीर साहेब 15वीं सदी के एक रहस्यवादी कवि एवं संत थे। वे हिंदी साहित्य के भक्ति कालीन युग में ईश्वर के महान प्रवर्तक के रूप में उभरे थे। वे हिंदू व इस्लाम धर्म को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में अटल विश्वास रखते थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास आदि की कड़ी निंदा की, उनकी आलोचनाओं से हिंदू व मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी तिलमिला उठते थे।
कबीर ही नहीं उनका जन्म भी एक रहस्यमयी है-
अनंत कोट ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाए।
सो तो एक कबीर हैं, जो जननी जन्या न माए।।
कबीर महाराज जी एक जनसाधारण जीवन जीए और जुलाहे के काम में हमेशा मगन रहे, उन्होंने अपने नाम के साथ दास शब्द का प्रयोग किया और कबीर दास कहलाये।
कबीरदास जी की प्रमुख शिक्षायें-
1- अहिंसा,
2- मांसाहार करना महापाप,
3- अनुशासन निषेध,
4- गुरु बनाना अति आवश्यक,
5- बिना गुरु के दान करना निषेध,
6- व्यभिचार निषेध,
7- छुआछात निषेध आदि ।
कबीरदास जी की पावन भक्ति में गुरु को प्रथम स्थान मिला है-
सतगुर की महिमा अनॅंत, अनॅंत किया उपगार।
लोचन अनॅंत उघाडिया, अनॅंत दिखावण हार।।
कबीरदास जी मनुष्यों के प्रति कहते हैं-
हे मनुष्यों! ईश्वर की बनाई हुई संरचना मानव एवं जीव-जंतु रूपी माया से क्यों छल, कपट तथा ठगी आदि करके अपना घर-परिवार तथा रूप-सौंदर्य आदि सजा-संवार रहे हो। यदि अपना घर-परिवार तथा रूप-सौंदर्य आदि सजाना-सॅवारना चाहते हो तो सत्कर्म करो अर्थात संसार रूपी पावन धाम में विराजमान मानव एवं जीव-जंतुरुपी मूर्तियों की अपनी क्षमतानुसार सेवा-सुरक्षा करके परमानंद को प्राप्त हो जाओ, इससे आप मय परिवार को सुख शांति प्राप्त होगी । साथ ही संपूर्ण जगत को भी सुख शांति प्राप्त होगी।
माया दीपक नर पतंग,भृमि-भृमि इवै पडंत ।
कहै कबीर गुरु ग्यान, एक आध उबरत ।।
माया देखि कै जगत लुभानी,काहे रे नर गरबाना ।
कहैं कबीर सुनौ भई साधौ, गूरु के हाथि काहें न बिकाना ।।
खाया पकाय लुटाय के, करिले अपना काम ।
चलती बिरिया रे नरा, संग न चलै छदाम ।।
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर ।
खाली हाथो बह गये, जिनके लाख करोर ।। ”
कबीरदास विषयों के परित्याग पर विशेष बल देते हैं। वे साधा जीवन जीने वाले साधारण पुरुष की तरह हमेशा रहे।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई ।
एकै आषिर पीव का, पढै सु पंडित होई ।। ”
कबीरदास एक महान लोकोपदेशक हैं। उन्होंने अपनी पावन लेखनी से लोक का कल्याण किया है। कबीर दास जी के उपदेश प्रेरणास्पद और प्रासंगिक हैं। पथभ्रष्ट मानव को सन्मार्ग दिखाता उनका साहित्य अजर-अमर है। कबीर दास की शिक्षा का अनुसरण करके मनुष्य मुक्ति पा सकता है।
संदर्भ-
1- शोध आलेख - कुरीतियों के निराकरण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका ( लेखक - डॉ. सिकंदर लाल ) ।
2- विकिपीडिया एवं गूगल सर्च इंजन ।
3- कल्याण, मासिक पत्रिका - अंक जून 2021 (गीता प्रेस गोरखपुर)
ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश