विनय सिंह विनम्र",शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
घाट पे नांव है..
चल मुसाफिर तेरा पास हीं गांव है।
देख पानी कहीं भी ठहरता नहीं"
फिर जमीं पे जमां,तेरा क्यों पांव है"
चल मुसाफिर तेरा पास हीं गांव है।
वक्त रुकता नहीं है कभी एक क्षण
बदलाव के दौर से सब गुजरते हैं कण
तु कोशिश तो कर..धूप में छांव है
चल मुसाफिर तेरा पास हीं गांव है।
है जरुरी नहीं तेरी हो जाये जय
देख विस्तार में सब निरंतर है लय"
एक पानी पे उभरा हुआ बुलबुला
कब तलक उम्र इसकी है तु हीं बता"
सत्य को मान ले सुबह हीं शाम है
चल मुसाफिर तेरा पास हीं गांव है।
लाख बंदिश हो या बेडियां पांव में
धर्म की ओट हो,जाति की छांव में
भ्रम के रिश्तों में बस तेरा ठहराव है"
चल मुसाफिर तेरा पास हीं गांव है।
मझवार,चन्दौली