डॉ.दशरथ मसानिया,शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
सत्यअहिंसा ब्रह्मचर्य, अस्तेय अपरिग्राह।
पाँच व्रतों को मानिये, जैन धरम के राह।।
जयजयजयजयतरुणासागर।
सच्चाई को किया उजागर। ।1
ऋषभ देव आदि तीर्थंकर।
जैन दिगंबर अरु श्वेताम्बर।।2
पार्श्वनाथ से तुम अवतारी।
महावीर से सत्य विचारी।।4
तेरा पंथी तारण पंथी।
झुल्लकऐलकअरु निर्ग्रन्थी।।3
छब्बीस जून सरसठ आना।
मध्यप्रदेश गुहूची ग्रामा। ।5
प्रताप शांति के घर जाये।
पवन जैन जब नाम धराये।।6
तेरह बरस उमर थी भाई।
छोड़ खिलोना तप को जाई।।7
त्यागा घर रिश्ता परिवारा।
पिच्छ कमंडल तुमने धारा।।8
गढ छत्तीसा शिक्षा पाये।
क्रांतिकारी संत कहाये।।9
सन अट्ठासी बीस जुलाई।
बागी डोरा दिक्षा पाई।।10
पुष्पदंत मुनि दिक्षा दीनी।
मृत्यु बोध कथा जब चीह्नी।।11
छुल्लकएलक अरुमुनि दिक्षा।
कठिन तपस्या घर घर भिक्षा।।12
सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञाना।
सम्यक् आचर तुमने जाना।।13
बहू चतुष्टय शिक्षा धरमा।
पाया मारग सात्त्विक करमा।।14
तीन रतन के तुम अधिकारी।
चौदह नियमा पालन हारी।।15
त्याग तपस्या करम कमाई।
क्षमा धीर करुणा तरुणाई। ।16
श्रवण बेल कर्नाटक जाई।
महाभिषेक महोत्सव भाई।।17
बाहुबली के दर्शन पाये।
जग के ज्ञानिन को समझाये।।18
दिगम्बर श्वेता मुनि बुलाये।
सबको चतुर्मास करवाये।।19
दीनबन्धु करुणा के सागर।
ज्ञान धरम के तुम ही आगर।।20
सत्य अहिंसा दिगंब धारक।
सादा जीवन उच्च विचारक।।21
कड़वे वचन सभी को भाते।
दर्शन करने सब जन आते।।22
कमल सेज पर आप विराजे।
तन मन से नित भक्ति साजे।।23
कड़वे बोल सत्य के संगा।
मीठे फल लागत हैं अंगा।।24
सकल देश में पग पग धाये।
श्रावक साधु धरम निभाये। ।25
शाकाहारी जीवन सारा।
उपदेशों में बोले खारा।।26
चौदह भाषा कड़वे वचना।
मुनि की वाणी सुंदर रचना।।27
गिनीज लिमका बुक में छाये।
सारा जग नित महिमा गाये।।28
राष्ट्र संत के तुम अधिकारी।
संयम नियमा धरम पुजारी।।29
मानवता का पाठ पढाया।
भ्रष्टों को तो दूर भगाया।।30
गीता रामायण इतिहासा।
गागर में सागर सी भाषा।।31
युग दृष्टा अरु सांची वाणी।
जीवन निर्मल जैसा पानी।।32
कथनी करनी एक समाना।
यासे तुमको जग ने माना।।33
चादर जस की तस धरदीनी।
कबिरा जैसी भक्ती कीनी।।34
एक सितंबर सन् अट्ठारा।
देवलोक जा डूबा तारा।।35
आओ आओ मुनि आचारी।
महिमा गाऊँ कंठ उचारी।।36
जयजयजयमुनितरुणासागर।
मन नमता भक्ती में सादर।।37
हे सद्गुरु तुम्हरे गुण गाऊँ।
चरणों में नित ध्यान लगाऊँ।।38
ण्मो अरिहंता तुमको वंदन।
शतशत बार करु अभिनंदन ।।39
यह चालीसा जो भी गावे।
सत्य मार्ग को तुरतहि पावे।।40
सदगुरु मुनिश्री को सदा,करता कोटि प्रणाम।
चरित्र तापस साधना, कहत हैं कवि मसान। ।
आगर (मालवा)मध्यप्रदेश