शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। स्तनपान बच्चे के पालन-पोषण तथा मां एवं शिशु के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनाने का प्राकृतिक तरीका है। स्तनपान शिशु के लिए विकास और सीखने के अवसर प्रदान करता है तथा बच्चे के पांचों बोध-देखना, सूंघना, सुनना, चखना, छूना-को उत्प्रेरित करता है। जुलाई माह से शुरू हुए संभव अभियान के तहत अगस्त माह की थीम ‘शिशु पोषण’ निर्धारित की गयी थी। जिसके आधार पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने यह जानकारी गर्भवती व धात्री महिलाओं को घर-घर जाकर जाकर दी और बताया कि शून्य से छह माह तक के बच्चों को केवल स्तनपान कराएं और छह माह से दो वर्ष तक के बच्चों को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार भी दें।
जिला कार्यक्रम अधिकारी राजेश गौड़ ने बताया कि शिशु पोषण अभियान के तहत जनपद में वर्तमान में शून्य से पांच साल तक के बच्चों की संख्या करीब 2.28 लाख है। 1.89 लाख सामान्य बच्चे हैं जबकि 11484 मध्यम अल्प वजन के बच्चे हैं। 4503 गंभीर अल्प वजन वाले बच्चे हैं। 4942 मध्यम कुपोषित (मैम) व 1679 अतिकुपोषित (सैम) बच्चों को चिन्हित किया गया। 396 बच्चे दिव्यांग मिले, जिनमें से 264 शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं जबकि 132 मानसिक रूप से दिव्यांग हैं। इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घऱ जाकर शून्य से छह माह तक के बच्चों को केवल स्तनपान कराने और छह माह से दो वर्ष तक के बच्चों को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार देने की जानकारी दी। इसके साथ यह भी बताया कि छह माह तक बच्चे के लिए मां का दूध ही सम्पूर्ण आहार माना जाता है। केवल स्तनपान से अभिप्राय यह है कि शिशुओं को केवल मां का दूध। इसके अलावा कोई अन्य दूध, खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ और यहां तक कि पानी भी न पिलाया जाय। शिशु के जन्म के उपरांत पहले छः माह के दौरान केवल स्तनपान कराया जाये I पहले छ: माह के लिए माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम तथा पूर्ण पोषण प्रदान करता है I केवल माँ का दूध पीने वाले शिशुओं को किसी और खाद्य पदार्थ या पेय, औषधीय जल, ग्लूकोज जल, फलों के रस या पानी की आवश्यकता नहीं होती। छह माह की आयु पूरी कर चुके बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए स्तनपान के साथ ऊपरी आहार शुरू करना बहुत जरूरी होता है। छह माह के बाद माँ का दूध बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता है। क्योंकि बच्चे की लंबाई, वजन, मांस के साथ उसके अंगों में वृद्धि होती है। इसके साथ ही बच्चे का मानसिक विकास भी होता है। जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, उसकी गतिविधियां बढ़ने लगती हैं, जैसे-पलटना, रेंगना, खड़ा होना, चलना आदि। इन सभी गतिविधियों के लिए पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज की जरूरत होती है और बच्चे की यह जरूरत पूरक आहार से ही पूरी होती है। बच्चों में कुपोषण का मुख्य कारण समय से और उचित मात्रा में पूरक आहार का नहीं दिया जाना भी है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी ने बताया कि अब उन घरों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जहाँ कम वजन, अतिकुपोषित (सैम)/ मध्यम कुपोषित (मैम) बच्चे हैं। ऐसे बच्चों के अभिभावकों को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता समझा रही हैं कि बच्चे को चाहे बुखार हो या दस्त, अथवा अन्य कोई समस्या हो, ऊपर का खाना देना बंद नहीं करना है। तबियत ख़राब होने की स्थिति में भी स्तनपान के साथ ऊपरी आहार देना है। स्तनपान छोटे बच्चे की उत्तरजीविता, स्वास्थ्य, पोषण, बच्चे में विश्वास एवं सुरक्षा की भावना के विकास को ही नहीं, अपितु मस्तिष्क विकास और सीखने की शक्ति में वृद्धि करता है। छह से नौ माह के बच्चे को माँ के दूध के साथ दलिया, आटे या सूजी का हलवा, सूजी की खीर, मसला हुआ केला, मसला हुआ दाल-चावल, खिचड़ी एक चम्मच घी और तेल अवश्य दें। इसके साथ ही मौसमी फल भी दें। जैसे- जैसे बच्चा बड़ा होता जाए खाने की मात्रा बढ़ाते रहें। नौ माह की आयु के बाद बच्चे को स्वयं खाना खाने को दें तथा ऊपरी आहार के साथ-साथ बच्चों का सही समय पर नियमित टीकाकरण भी कराएं। यह टीके बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं।
जन्म के उपरांत पहले छः माह के दौरान केवल स्तनपान सर्वोत्तम
byHavlesh Kumar Patel
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