भोलेनाथ चालीसा

डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

भोलेनाथ कृपालु हैं, करते वास मसान।
भभूति का सिंगार हैं, जाने सकल जहान।।
जयजय भोले जयशिवशंकर।
जय महदेवा जय गंगाधर।।1
तेरी महिमा निशि दिन गाते।
दर्शन पाकर अति सुख पाते।।2
तीन नेत्र के तुम हो स्वामी।
तीसर जाने  कोई  ज्ञानी।।3
तुमको भजते विष्णू नारद।
गाते ब्रह्मा  देवी  शारद।।4
जग में सबको खूब लुटाया।
भक्तों ने मनमाना पाया।।5
सागर मंथन विष की ज्वाला।
पीकर भोले बन मतवाला।।6
सुरा सुरा सब दानव पाया।
अमरत सारा देव लुटाया।।7
विष को तुमने गले लगाया।
नील कंठ जब नाम धराया।।8
आक धतूरा भांग चढ़ाया।
बील शमी पंचामृत भाया।9
नेक भाव से जल की धारा।
कर अभिषेका मंत्र उचारा।।10
पूत कार्तिक और गणेशा।
मातु भवानी रूप विशेषा।।11
विषधर को तो गले लगाया।
फिर नंदी वाहन बन आया।12
शीश गंग सब मन हरषाता।
भाल चंद्रमा तिलक सुहाता।।13
गौर शरीरा कटि मृगछाला।
गले विराजे मुंडन माला।।14
एक हाथ में डमरु सोहे।
दूजे कर में तिरसुल मोहे।।15
दक्ष प्रजापत जग्य रचाया।
सारें देवों को बुलवाया।।16
शिवजी का जब भाग न पाया।
योग अग्नि मां आप जलाया।17
दो गण को तब आप भिजाया।।
ससुर दक्ष का अहम् मिटाया।।18
भागीरथ का तप था भारी।
गंगा को जब शीश उतारी।।19
एक धार धरती पर आई।
सारे जग ने मुक्ती पाई।।20
दुष्ट जलंधर मार गिराया।
भक्तों को भी आप बचाया।।21
जब देवन ने तुम्हें पुकारा।
तारकसुर कार्तिक ने मारा।।22
शंखचूर का किया सफाया।
संतजनों को आन बचाया।23
तिरपुर दानव अत्याचारी।
मारा तुमने बन त्रिपुरारी।।24
पूजा सावन लगे पियारी।
बम बोले की महिमा भारी।।25
कांवड़ियां पैदल चल आते।
नदियों का पावन जल लाते।।26
फिर भोले को आय चढ़ाते।
हर हर भोले बम बम गाते।।27
जल अभिषेका शीश नमाते।
करते सुमिरण दुख भग जाते।28
एक हि आशा एक भरोसा।
दानी जग में है नहिं तोसा।।29
बालपने से तुम्हें पुकारा।
ठीक समय पर आप संभाला।30
तू ही जग का है रखवारा।
सारे दुखड़े तारणहारा।।31
तन मन के सब रोग मिटाओ।
सारे जग को आन बचाओ।32
हे त्रिपुरारी शरण तिहारी।
सारे जग में हा हा कारी।।33
तुमसा कौन जगत में दानी।
हर लो पीड़ा जन कल्याणी।।34
कोढ़ी का तो कोढ़ मिटाया।
कैदी को भी मुक्त कराया।।35
जो  भी तेरे  द्वारे आया।
खाली हाथ नहीं लौटाया।।36
इस जीवन में कई फंद है।
अंतर मन में बहुत द्वंद है।।37
ये तेरी  कैसी  है  माया।
कोई भी इक समझ न पाया।।38
संत महत्मा शरणे आते।
रोग दोष सब के मिट जाते।।39
यह चालीसा जो भी गावे।
मनवांछित फल तुरतहि पावे।40
बार बार मैं अरज करुं, भोले करो सहाय।
इस जग की रक्षा करो, अपना रूप दिखाय।।
23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश

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