रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रेखा घनश्याम गौड़
रेखा घनश्याम गौड़
हिम्मत बंधाना ही
सबसे बड़ी जीत होती है खुद पर।
ना चाहते हुए भी हमको
उसी तरह लड़ते जाना पड़ता है
परिस्थितियों से,
जैसे एक सैनिक
अपने बहुत अजीज़ मित्र को
गोली लगे हुए देख कर भी
पीठ पर गोली खाकर
जाना नहीं चाहता।
हिम्मत कोई हमें
और लाकर नहीं थमा सकता,
उसी तरह जिस तरह
युद्ध के लिए कृष्ण ने
अर्जुन को तैयार किया था।
हमें यह जानने की ज़रूरत है
कि यहाँ हमारे अन्दर ही
ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां हैं,
और हमें उनका अपमान कर के तो
संसार से नहीं जाना है।
माता-पिता, भाई-बंधु
सब एक वक़्त पर हमसे छूटेंगे,
क्यों कि सदा जैसी कोई चीज़
इस दुनिया मे नहीं हैं।
कल जब हम भी ना रहें,
तो हमारा नाम रहे,
बस उतना काम हमें करके
यहाँ से निकलना है।
वो भी तब, जब हम बुलाये जायें।
क्योंकि हो सकता है कि
जिस तरक्की को आज हम
अपनी मुट्ठी मे लिये खड़े हैं,
उसके भी सपने हों
किसी की आँखों में।
हम अभी उतने भी बड़े नहीं हुए
कि विधि से भी ऊपर जाकर
विधान का प्रतिस्थापन कर सकें।
ज़रूरत बस इतनी है कि
जिन्दगी मे जो चाहे करना,
मैदान न छोड़ना, हार न मानना,
और यदि मेरे शब्दों की कीमत हो,
तो "मरना मत"।
सबसे बड़ी जीत होती है खुद पर।
ना चाहते हुए भी हमको
उसी तरह लड़ते जाना पड़ता है
परिस्थितियों से,
जैसे एक सैनिक
अपने बहुत अजीज़ मित्र को
गोली लगे हुए देख कर भी
पीठ पर गोली खाकर
जाना नहीं चाहता।
हिम्मत कोई हमें
और लाकर नहीं थमा सकता,
उसी तरह जिस तरह
युद्ध के लिए कृष्ण ने
अर्जुन को तैयार किया था।
हमें यह जानने की ज़रूरत है
कि यहाँ हमारे अन्दर ही
ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां हैं,
और हमें उनका अपमान कर के तो
संसार से नहीं जाना है।
माता-पिता, भाई-बंधु
सब एक वक़्त पर हमसे छूटेंगे,
क्यों कि सदा जैसी कोई चीज़
इस दुनिया मे नहीं हैं।
कल जब हम भी ना रहें,
तो हमारा नाम रहे,
बस उतना काम हमें करके
यहाँ से निकलना है।
वो भी तब, जब हम बुलाये जायें।
क्योंकि हो सकता है कि
जिस तरक्की को आज हम
अपनी मुट्ठी मे लिये खड़े हैं,
उसके भी सपने हों
किसी की आँखों में।
हम अभी उतने भी बड़े नहीं हुए
कि विधि से भी ऊपर जाकर
विधान का प्रतिस्थापन कर सकें।
ज़रूरत बस इतनी है कि
जिन्दगी मे जो चाहे करना,
मैदान न छोड़ना, हार न मानना,
और यदि मेरे शब्दों की कीमत हो,
तो "मरना मत"।