पापा के साये में

डॉ. अ कीर्तिवर्ध, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

पापा के साये में चलकर, 
मन्जिल को पा लेते हैं,
धूप घनी या राह में कांटे, 
आगे बढ़ते जाते हैं।
लग जाये जो ठोकर पग में, 
पापा हमें संभालेंगे,
विश्वासों का सम्बल लेकर, 
ध्वज गगन फहराते हैं।
चिन्तित जब भी चिन्ताओं से, 
पापा कहते 'मैं हूं ना',
कुरूक्षेत्र में अर्जुन विचलित, 
कान्हा कहते 'मै हूं ना'।
जब जब संकट मानवता पर, 
हुई धर्म हानि जग में,
तब तब हुये अवतरित भगवन, 
विष्णु कहते 'मै हूं ना''।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।

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