डॉ. अ कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बहुत महत्वपूर्ण होती हैं
गुजरे वक्त के साथ
और भी
मजबूत होती है।
कभी पढ़ना
खतों को
जो लिखे थे
कभी
प्यार के वशीभूत
विरह
वेदना
मिलन की चाह
सुनहरे ख्वाब
सुख दुःख की बातें
रिश्ते
कसमें वादे समेटे
हाँ
पढ़ना
उन सबको
एक अन्तराल के बाद
देता है
अनुभूति
कुछ अलग सी
और
जीवन्त हो जाता है
वह काल
जो गुज़र गया
जिम्मेदारियों के बोझ तले
कहीं दब गया।
कभी कभी
आती है हँसी
सोचकर
खुद के ही
अपरिपक्व विचार
बस
स्व केन्द्रित रह
पाने की चाह
समेटने की चाह
सारे जगत की ख़ुशियाँ
बस
अपने ही आँचल में।
हाँ
सब ही तो
लिखा है
उन खतों में
जिन पर चढ़ गई
धूल की मोटी परत
कुछ खो गये
यादों के
बवंडर में
समाज के
दोहरे चरित्र के सामने
बेबस होकर
अथवा
बिसरा दिए
हमने खुद ही
विवशताओं के कारण।
ख़त
इतिहास रचते हैं
समेटे रहते हैं
काल क्रम
संस्कार
संस्कृति
सभ्यता
सरोकार
रिश्ते नाते
गली मोहल्ले
स्कूल के दिन
और बचपन के दोस्त भी।
बहुत सी
खट्टी-मीठी यादें
दादी-नानी की बातें
जीवन मृत्यु के समाचार
इस पार से उस पार
और हाँ
ख़त
निर्लिप्त रहते हैं
समभाव लिए
सब सहते हैं।
फिर कहता हूँ
पढ़ना उन्हें
काल के अन्तराल से
खुद पर हंसना
इतिहास पढ़ना
पढ़ते पढ़ते
चलचित्र
ख़त पर ही देखना।
ख़त
बहुत लाजवाब होते हैं।
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव मुजफ्फरनगर