गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्ष पर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना
परन्तु विरोधी भृगु ने अपने प्रभाव से हमें तिरस्कृत कर दिया। हम उसके मंत्रबल का सामना न कर सके। प्रभो! विश्वम्भर! वे ही हम लोग आज आपकी शरण में आये हैं। दयालो! वहां प्राप्त हुए भय से आप हमें बचाईये, निर्भय कीजिये। महाप्रभो! उस यज्ञ में दक्ष आदि सभी दुष्टों ने घमंड़ में आकर आपका विशेषरूप से अपमान किया है। कल्याणकारी शिव! इस प्रकार हमनें अपना, सती देवी का और मूढ़ बुद्धि वाले दक्ष आदि का भी सारा वृतान्त कह सुनाया। अब आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा करें।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! अपने पार्षदों की यह बात सुनकर भगवान् शिव ने वहां की सारी घटना जानने के लिए शीघ्र ही तुम्हारा स्मरण किया। देवर्षे! तुम दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हो। अतः भगवान् के स्मरण करने पर तुम तुरन्त वहां आ पहुंचे और शंकर जी को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके खड़े हो गये। स्वामी शिव ने तुम्हारी प्रसंशा करके तुमसे दक्षयज्ञ में गयी हुई सती का समाचार तथा दूसरी घटनाओं को पूछा। तात! शम्भु के पूछने पर शिव में मन लगाये रखने वाले तुमने शीघ्र ही वह सारा वृतांत कह सुनाया, जो दक्षयज्ञ में घटित हुआ था। मुने तुम्हारे मुख से निकली हुई बात सुनकर उस समय महान् रौद्र पराक्रम से सम्पन्न सर्वेश्वर रूद्र ने तुरन्त ही बड़ा भारी रोष प्रकट किया।
(शेष आगामी अंक में)