गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्ष पर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना
लोकसंहारकारी रूद्र ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक उस पर्वत के ऊपर दे मारा। मुने! भगवान् शंकर के पटकने से उस जटा के दो टुकडे हो गये और महाप्रलय के समान भयंकर शब्द प्रकट हुआ। देवर्षे! उस जटा के पूर्व भाग से महाभयंकर महाबली वीरभद्र प्रकट हुए, जो समस्त शिवगणों के अगुआ हैं। वे भूमण्डल को सब ओर से व्याप्त करके उससे भी दस अंगुल अधिक होकर खड़े हुए। वे देखने में प्रलययाग्नि के समान जान पड़ते थे। उनका शरीर बहुत ऊंचा था। वे एक हजार भुजाओं से युक्त थे। उन सर्वसमर्थ महारूद्र के क्रोधपूर्वक प्रकट हुए निःश्वास से सौ प्रकार के ज्वर और तेरह प्रकार के संन्निपात रोग पैदा हो गये। तात! उस जटा के दूसरे भाग से महाकाली उत्पन्न हुईं, जो बड़ी भयंकर दिखायी देती थीं। वे करोड़ों भूतों से घिरी हुई थीं। जो ज्वर पैदा हुए, वे सब के सब शरीरधारी, क्रूर और समस्त लोकों के लिए भयंकर थे। वे अपने तेज से प्रज्जवलित हो सब ओर दाह उत्पन्न करते हुए से प्रतीत हो होते थे। वीरभद्र बातचीत करने में बड़े कुशल थे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर परमेश्वर शिव को प्रणाम करके कहा।
वीरभद्र बोले- सोम, सूर्य और अग्नि को तीन नेत्रों के रूप में धारण करने वाले प्रभो! शीघ्र आज्ञा दीजिये। मुझे इस समय कौन-कौन से कार्य करना होगा? (शेष आगामी अंक में)