मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
चंपक लाल जी अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यापारी थे पचास कोस में कारोबार फैला था। दया माया से छोटे छोटे दुकानदारों को बैलगाड़ी से सब समान भेज देते थे ब्याज नहीं लेते थे जायज नफ्फे में माल बेचते थे। पितांबर लाल भी होनहार कर्मचारी था। इसलिए अपने बेटे ईश्वर चंद के बाद उसे मानते थे। ईश्वर चंद धीरे धीरे मुनीम जी बन गया। बेटे की शादी के बाद छह पोते हुए बेटियों की भी शादी करदी। पोते चंद्रभान को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेज दिया। बङे नाज नजरे करता था लेकिन दादाजी चंपक लाल बहुत प्यार करते थे।
समय का चक्र तेजगति से घुमते गया कि ईश्वर चंद की टीबी की बिमारी में मृत्यु हो गई तो चंपक लाल जी टूट गये। वृद्ध अवस्था में शिक्षित पोते को गांव में बुलाकर कारोबार सौंप दिया। सारी जानकारी पिताबंर लाल जी के पास थी इसलिए उनकी ही पुछ होती थी तो चंद्रभान इर्ष्या करते करते एक दिन मुनीम जी को डेढ़ सौ रूपये देकर कहा कि कल से आप काम पर मत आना। बुढापे में बेचारे को निकाल दिया।
लापरवाही एवं दुर्व्यवहार के कारण कारोबार चोपट हो गया। देखते देखते कर्ज बढने लगा दुसरे दुकानदार चमक गये लेकिन रसीकलाल चंपक लाल फर्म दिवालिया होने की कगार में आ गया। एक दिन घोङे पर बैठकर झुमबस्ती के राजा के सिपाही तीस हजार का टेक्स लेने आ पहुंचे तो सबके हाथपांव फुल गये। कोई उपाय नहीं दिखाई दिया तो चंद्रभान की माँ बोली जाओ मुनीम जी हाथपांव जोड़ कर ससम्मान लाओ। पांचों भाई मान मनवार के बाद ले आये।
सुबह जब सिपाही आए तो मुनीम जी आवभगत की तथा बच्चों की गलती पर माफी मांगी। सिपाही खुश हो गये। उन्हें राजी कर लिया कि 5/7 दिन बाद लौटते समय रुपये ले जाना वो मान गए। अनुभवी मुनीम जी ने बताया कि इस इस जगह आपकी संपत्ति है तो बेचकर सतर हजार रुपये इकट्ठा किया। जब वो आये तो उनका पैदा दे दिया तथा चालीस हजार से फिर अपनी शाख बनाकर व्यापार को सुचारू रुप से चला दिया। अब मुनीम जी दायित्व निभाकर जाने लगे तो चंद्रभान ने पांव पकङ कर कहा कि दादाजी हम भूल गये थे कि जब यंग में जंग लग जाए तब ओल्ड इज गोल्ड का फार्मूला रामबाण होता है।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम