अखिलेश यादव के दौरे से बदलेंगे सियासी समीकरण

शि.वा.ब्यूरो, देवबंद। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव का देवबंद दौरा यूं तो गैर सियासी था लेकिन उससे मुस्लिम सियासत में खासा उबाल आ गया है। मुस्लिम सियासी हलके में भीतर ही भीतर जो चल रहा था वह भी स्पष्ट रूप से सतह पर आ गया है। इसकी उम्मीद ना तो अखिलेश यादव को लगी होगी और ना ही दूसरे प्रभावित सियासतदानों को।

पूर्व पालिकाध्यक्ष एवं पूर्व विधायक माविया अली के बेटे सभासद हैदर अली का बृहस्पतिवार को ईशा खान के साथ निकाह की रस्म अदा हुई। अखिलेश यादव भी इसके गवाह बने। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अखिलेश यादव को देवबंद आने के लिए दारूल उलूम से नायब मोहतमिम मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी ने फोन किया था। कुछ वर्ष पूर्व दारूल उलूम के मोहतमिम गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को हटाने के लिए उन्हीं के समधी एवं मौजूदा जमीयत उलमाए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दारूल उलूम के सदर मुदर्रिस मौलाना अरशद मदनी ने मुहिम चलाई थी जो सफल रही थी। माविया अली वस्तानवी के साथ थे। उस दौरान अरशद मदनी के मुलायम सिंह यादव से बेहद करीबी रिश्ते थे। वह सपा में शामिल हुए बगैर उसकी सियासत को गहराई से प्रभावित करते थे। 

अब जब मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव दो नवंबर को देवबंद आए तो मौलाना अरशद मदनी और उसी खेमे के दारूल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने उनसे दूरी बनाई। जबकि अब्दुल खालिक मद्रासी अखिलेश यादव से विवाह समारोह में मिले। मद्रासी और माविया अली के काफी करीबी रिश्ते हैं। सियासी हलकों में भी अखिलेश के दौरे ने हलचल पैदा की। बसपा के सहारनपुर के सांसद फजलुर्रहमान कुरैशी ने भी शादी में अखिलेश यादव से मुलाकात और गुफ्तगू दोनों की। मीडिया को प्रयास करके इस मुलाकात से दूर रखा गया। एक बड़े नेता के अनुसार फजलुर्रहमान कुरैशी सहारनपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि प्रभावशाली युवा मुस्लिम नेता इमरान मसूद के सियासी वजूद को सबसे ज्यादा नुकसान फजलुर्रहमान कुरैशी ने पहुंचाया है। 

पिछले चुनावों में सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन था। इमरान मसूद कांग्रेसी टिकट पर चुनाव लड़े थे और दो लाख दस हजार वोट प्राप्त किए थे। लेकिन दलित-मुस्लिम मतों के एकीकरण ने कुरैशी को विजेता बना दिया था। पांच सालों के दौरान इमरान मसूद ने कई सियासी पलटियां खाईं। विधानसभा चुनाव के मौके पर वह सपा में चले गए थे पर आशु मलिक, उमर अली और दूसरे मुस्लिम नेताओं ने वहां इमरान की दाल नहीं गलने दी। वह पार्टी छोड़कर बसपा में चले गए। जिससे फजलुर्रहमान कुरैशी के वजूद को जबरदस्त टक्कर लगी। वह बसपा में असहज हो गए और उन्होंने सपा में इमरान विरोधियों के जरिए अपनी पहुंच अखिलेश यादव तक बना ली। कुछ ही माह पूर्व इमरान मसूद बसपा को भी छोड़ भागे। जिस कारण फजलुर्रहमान कुरैशी के लिए बसपा और सपा दोनों घर एक जैसे ही हो गए हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि सपा-बसपा में गठबंधन नहीं होने के आसार दिख रहे हैं। ऐसे में फजलुर्रहमान कुरैशी यदि सपा से भाग्य आजमाते हैं तो मायावती उन्हें सबक सिखाने के लिए किसी तकड़े मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारेगी। उधर इमरान मसूद कांग्रेस के टिकट पर फजलुर्रहमान कुरैशी की राहों में कांटे बिछाने का काम करेंगे। 

इमरान मसूद ने इस संवाददाता से कहा कि वह गठबंधन यानि इंडिया के सहारनपुर सीट से अधिकृत उम्मीदवार होंगे। लेकिन इसकी संभावनाएं कम लगती हैं। तब इमरान मसूद, फजलुर्रहमान कुरैशी और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने होगे। जिससे भाजपा की राह आसान हो जाएगी। भाजपा 2014 का चुनाव तो जीत गई थी लेकिन मोदी लहर के बावजूद उसके सांसद उम्मीदवार राघव लखनपाल शर्मा भारी मतों से हार गए थे। भाजपा अबकी किसी दमदार उम्मीदवार पर विचार कर रही है। बदली हुई स्थितियां सहारनपुर की सियासत में नए गुल खिला सकती है। इसके संकेत अखिलेश यादव के दौरे से साफ तौर से मिल गए है।



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