मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
लिछमी का जन्म बहुत ही घराने में सातवीं संतान के रूप में हुआ। दाई सिंणगारी ताई लिछमी से ज्यादा रोयी कि रोजाना पांच चार बच्चों को जिंदगी भर जन्म दिलवाती रही लेकिन अंतिम चरण में यह फुल सी सुंदर कन्या अंधी जन्मी है मेरे पेशे में दाग लग गया। सारे घर के बाद मुह्ह्ल्ले फिर गाँव में मातम छा गया। सारा गाँव मातम मना रहा था तो मसखरे कहाँ चुकने वाले थे रघुनंदन बोला कोई बात नहीं अपने गाँव में कोई भजन सुनाने वाला भजनी नहीं था ईश्वर ने सुरदास भेज दिया तो बुजुर्गों ने डांट पिलाई तो बोलने लगा हां काका जब छोरी है तो सुरदास नहीं इसे तो सुरदासी कहना पङेगा। घर वालों ने पंडित जी के कहे अनुसार नाम रखा लिछमी। धीरे धीरे अनचाही लिछमी बङी होने लगी तो शादी की चिंता स्वाभाविक थी लेकिन सभी काका ताऊ के बङे एवं छोटे बच्चों की शादी होती तो उसे दुसरे के घर में रख आते। अब जब आउट डेटेट हो गई तो अपनी क्षमता के अनुसार काम करती दादा दादी के बाद मांबाप भी मर गए। लिछमी अधेड़ उम्र की हो गई। उसका नाम दासी पङ गया।
एक दिन एक पहुंचे हुए संत गाँव में आये तो लिक्षमी भी आयी। संत ने लिछमी को भी जल्दबाजी में अखंड शोभाग्यवती का आशीर्वाद दे दिया तो सब सन्न थे। लोगों ने समझाया कि बाबाजी यह अंधी है आप आज फंस गए इसकी शादी हुई नहीं ना कभी होगी तो कैसे अखंड शोभाग्यवती रहेगी। बाबा मौन हो गये तो लोगों ने मजे ले लेकर कहा कि वाह बाबा अब मौन रहने से नहीं होगा। गाँव वालों ने पहरा लगा दिया कि कहीं यह बाबा रात में अपने साथियों के साथ भाग ना जाए। तीसरे दिन बाबा नहा धो कर अपनी वेशभूषा त्याग कर धोती कुर्ते में आकर कहा कि हालांकि मैं इसे आंखें तो नहीं दे सकता लेकिन तीन दशक की साधना का त्याग करने के साथ इससे विवाह करके अखंड शोभाग्यवती अवश्य बना सकता हूँ। मैं जीवन भर इस ब्रह्मचारिणी के सतित्व की रक्षा करूँगा।
सभी साधुओं ने संत उमानाथ महाराज को सन्यास धर्म से मुक्त आध्यात्मिक रुप से करवाने के साथ साथ धार्मिक रिति रिवाज से आशीर्वाद देते हुए दोनों का विवाह करवा कर सन्यासिनि लिछमी को साथ लेकर चल पङे।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
एक दिन एक पहुंचे हुए संत गाँव में आये तो लिक्षमी भी आयी। संत ने लिछमी को भी जल्दबाजी में अखंड शोभाग्यवती का आशीर्वाद दे दिया तो सब सन्न थे। लोगों ने समझाया कि बाबाजी यह अंधी है आप आज फंस गए इसकी शादी हुई नहीं ना कभी होगी तो कैसे अखंड शोभाग्यवती रहेगी। बाबा मौन हो गये तो लोगों ने मजे ले लेकर कहा कि वाह बाबा अब मौन रहने से नहीं होगा। गाँव वालों ने पहरा लगा दिया कि कहीं यह बाबा रात में अपने साथियों के साथ भाग ना जाए। तीसरे दिन बाबा नहा धो कर अपनी वेशभूषा त्याग कर धोती कुर्ते में आकर कहा कि हालांकि मैं इसे आंखें तो नहीं दे सकता लेकिन तीन दशक की साधना का त्याग करने के साथ इससे विवाह करके अखंड शोभाग्यवती अवश्य बना सकता हूँ। मैं जीवन भर इस ब्रह्मचारिणी के सतित्व की रक्षा करूँगा।
सभी साधुओं ने संत उमानाथ महाराज को सन्यास धर्म से मुक्त आध्यात्मिक रुप से करवाने के साथ साथ धार्मिक रिति रिवाज से आशीर्वाद देते हुए दोनों का विवाह करवा कर सन्यासिनि लिछमी को साथ लेकर चल पङे।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम