तेरे जीवन में सार नहीं

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जो प्यार से लबालब नहीं
जिसमें ओरों का प्यार नहीं
नहीं जानता जीवन जीना
 पत्थर है उसमें इजहार नहीं
घृणा से विष व्यापन होता
जिसका शिष्ट व्यवहार नहीं
बोझ है लेकिन शिष्टाचार नहीं
जन्म मानव का पाया अवश्य
जहाँ अतिथि का सत्कार नहीं
कुंठित पिङित तु है दानव
तुममे स्वदेश से प्यार नहीं
क्यों जन्म लिया ऐ धरा पर
तुम सा कोई बेकार नहीं
इर्ष्या द्वेष में भटक रहा
तेरा कोई किनार नहीं
समझाया तुझे बार बार
लेकिन कोई सुधार नही
बहाई नहीं प्रेम की गंगा
बना कभी पतवार नहीं
धिक्कार तेरे जन्म पर है
तेरा कुछ भी अधिकार नहीं
नीरस जीवन तेरा होगा
उसमें कोई रसधार नहीं
पकड़ रास्ता समझ खुद
देश राष्ट्र से प्यार नहीं
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

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