शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (465) गतांक से आगे......

उमा देवी का दिव्य रूप से देवताओं को दर्शन देना, देवताओं का उनसे अपना अभिप्राय निवेदन करना और देवी का अवतार लेने की बात स्वीकार करके देवताओं को आश्वासन देना....

उन जगदम्बा की कृपा पाकर वहां सुस्पष्ट दर्शन कर सके। इसके बाद देवता बोले-अम्बिके! महादेवि! हम सदा आपके दास हैं। आप प्रसन्नतापूर्वक हमारा निवेदन सुनें। पहले आप दक्ष की पुत्री रूप में अवतीर्ण हो लोक में रूद्रदेव की वल्लभा हुई थीं। उस समय आपने ब्रह्माजी के तथा दूसरे देवताओं के महान् दुःख का निवारण किया था। तदनन्तर पिता से अनादर पाकर अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार आपने शरीर को त्याग दिया और स्वधाम में पधार आयीं। इससे भगवान् हर को भी बड़ा दुख हुआ। 

महेश्वरि! आपके चले आने से देवताओं का कार्य भी पूरा नहीं हुआ। अतः हम देवता और मुनि व्याकुल होकर आपकी शरण में आये हैं। महेशानि! शिवे! आप देवताओं का मनोरथा पूरा करें, जिससे सनत्कुमार का वचन सफल हो। दवि! आप भूतल पर अवतीर्ण हो पुनः रूद्र देव की पत्नी होइए और यथायोग्य ऐसी लीला कीजिए, जिससे देवताओं को सुख प्राप्त हो। देवि! इससे कैलास पर्वत पर निवास करने वाले रूद्रदेव भी सुखी होंगे। आप ऐसी कृपा करें, जिससे सब सुखी हों और सबका कल्याण सारा दुख नष्ट हो जाये।

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! ऐसा कहकर विष्णु आदि सब देवता प्रेम में मग्न हो गये और भक्ति से विनम्र होकर चुपचाप खड़े रहे। देवताओं की यह स्तुति सुनकर शिवा देवी को भी बड़ी प्रसन्नता हई।      (शेष आगामी अंक में)

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