शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। श्रीराम कॉलेज के प्रांगण में ललित कला संकाय के विद्यार्थियों के लिए हस्तशिल्प आभूषण निर्माण पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जो छात्रों और कला प्रेमियों के बीच रचनात्मकता और व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक जीवंत पहल थी। इस कार्यशाला का उद्देश्य पारंपरिक शिल्प कौशल को बढ़ावा देना एवं शिल्पकला के महत्व को भली-भांति जानना रहा। कार्यशाला का नेतृत्व ललित कला विभाग के निदेशक डॉ0 मनोज धीमान ने किया। विभागाध्यक्ष मीनाक्षी काकरान के मार्गदर्शन में इसका समन्वय किया गया था, जिसमें प्रतिभागियों को अद्वितीय हस्तनिर्मित आभूषण बनाने में व्यापक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल प्रदान किया। कार्यशाला की कोऑर्डिनेटर सहायक प्रोफेसर सोनी श्रीवास्तव ने तीन कार्यदिवसों में तरह-तरह के मैटेरियल्स जैसे मोती ,लेसेस, रिबन, क्ले, अमरिकन जर्कन, नली, वायरवर्क आदि से खूबसूरत क्राफ्ट ज्वेलरी डिज़ाइन बनवाये।
इस कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को आभूषण डिजाइन और शिल्पकला की बुनियादी तकनीक को जानने का सुन्दर अवसर मिला, बीडिंग, फायरवर्क और क्ले मॉडलिंग सहित पारंपरिक और समकालीन तकनीकों के बारे में जानकर हस्तनिर्मित आभूषणों के सांस्कृतिक महत्व के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। इस अवसर पर ललित कला विभाग के निदेशक डॉ0 मनोज धीमान ने कहा कि यह कार्यशाला कला और विरासत का उत्सव थी। प्रतिभागियों को अपने विचारों को जीवन में उतारते हुए और हस्तनिर्मित आभूषणों की जटिल सुंदरता को अपनाते हुए देखना प्रेरणादायक था।
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष मीनाक्षी काकरान ने छात्र/छात्राओं की प्रतिभा को निखारने में ऐसी कार्यशालाओं के महत्व पर जोर दिया। इस तरह की कार्यशालाएं परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटती हैं। ये नवोदित कलाकारों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में निहित रहते हुए प्रयोग करने का अधिकार देती हैं।
कार्यक्रम का समापन प्रतिभागियों की उत्कृष्ट कृतियों को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी के साथ हुआ। प्रत्येक कृति अपने निर्माता की अनूठी रचनात्मकता और समर्पण को दर्शाती थी, जिससे उपस्थित लोग प्रदर्शित की गई प्रतिभा और प्रयास से अभिभूत हो गए।
ललित कला संकाय ऐसे मंच प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो नवाचार को प्रेरित करते हैं और कलात्मक परंपराओं का त्यौहार मनाते हैं एवं निकट भविष्य में ऐसे और समृद्ध आयोजनों के लिए सदैव अग्रसर रहेंगें।
इस कार्यशाला को सफल बनाने के लिए सहायक प्रोफेसर डॉ0 अनु, बिन्नू पुंडीर, रजनीकांत, रीना त्यागी, मयंक सैनी, अजित मन्ना, सोनी श्रीवातव, सिद्धार्थ ,शहज़ादी और करुणाकर शर्मा का विशेष योगदान रहा।