विगत तीस वर्षों से निरंतर हिंदी व हिमाचली की विभिन्न विधाओं में देश की दर्जनों नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में लेखन व प्रकाशन सहित कई कैसेट्स में हिमाचली गीत व भजन लेखन करने वाले कई सम्मानों से सुशोभित सेवानिवृत हिमाचल प्रदेश भाषा एवं संस्कृति अकादमी शिमला के सदस्य रहे हिंदी अध्यापक अशोक दर्द ने लोक संस्कृति एवं हिमाचली पहाड़ी भाषा संरक्षण संवर्धन में जुटी उमा ठाकुर नधैक से बेबाक वार्ता की, पेश हैं उनकी वार्ता के कुछ प्रमुख अंश.......
अशोक दर्दः नमस्कार मैम! आप अपने जन्म स्थान एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पाठकों को बताएं।
उमा ठाकुर नधैकः जी! मेरा जन्म जिला शिमला के कुमारसेन तहसील के अंतर्गत कोटगढ़ के प्रकृति की गोद में बसे छोटे से गांव मैलन(कोफनी) में हुआ । मेरी माता का नाम तारामणि और पिता का नाम कमलानंद शर्मा है। दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं मगर आज भी उनके होने का एहसास उनके जीवन मूल्य मुझे आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरणा देते हैं। उस जमाने में जब बेटियों के जन्म पर भाग्य को कोसा जाता था,मेरे माता-पिता ने हम चार बहनों की परवरिश में कोई कमी नही छोड़ी। दुर्भाग्य से दो बहनें सबसे बडी बहन चम्पा शर्मा और शारदा शर्मा अब इस दुनिया में नहीं मगर उनकी यादे हमेशा हमेशा लेखन की प्रेरणा बनती हैं। अपनों का यू बिछुड़ना भीतर शून्य पैदा करता है,फिर हम या तो बिखर जाते हैं या फिर और ज्यादा सशक्त बनकर उभरते हैं।अब मै और बडी बहन ज्ञानी शर्मा संबल बनकर अपने-अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर जीवन में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढने की कोशिश कर रहे हैं।
अशोक दर्दः आपकी प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कहां-कहां हुई? उसके बारे में पाठकों को बताएं।
उमा ठाकुर नधैकः मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल गवर्नमेंट हाई स्कूल मैलन जो कि अब सीनियर सेकेंडरी स्कूल बन चुका है से हुई । उसके पश्चात जमा दो की शिक्षा मैंने गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल मतियाना,तहसील ठियोग से नॉन मेडिकल में की। उच्च शिक्षा की अगर मैं बात करूं तो ग्रेजुएशन रामपुर कॉलेज व दूरवर्ती शिक्षा से की। सरकारी नौकरी लगने के कारण बाकी की पढ़ाई मैंने दूरवर्ती शिक्षा द्वारा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से की । सबसे पहले एम.ए. इंग्लिश फिर मैंने इतिहास और फिर पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की । साथ ही इग्नू से पत्रकारिता और रेडियो लेखन में डिप्लोमा भी किया ।वर्तमान में पत्रकारिता में ही पीएचडी कर रही हूं।
अशोक दर्दः प्राथमिक शिक्षा में आपको पढ़ाने वाले अध्यापक कौन थे? क्या उनकी तस्वीर आपकी स्मृतियों में आज भी है कृपया पाठकों को बताएं।
उमा ठाकुर नधैकः जी हां बिल्कुल। प्राथमिक शिक्षा के अध्यापकों को कौन भूल सकता है भला। माता-पिता के पश्चात यही गुरु होते हैं, जो हमें अक्षर ज्ञान करवाते हैं और समाज में एक बेहतर इंसान बनने के लिए हमारे कोरे कागज रूपी मन में आत्मविश्वास और नैतिक मूल्यों के रंग भरते हैं। विद्या मैडम, विमला डोगरा मैडम, मीनाक्षी मैम, सत्यप्रकाश शर्मा (पीटीआई) मेरी स्मृतियों में हमेशा रहेंगे।
अशोक दर्दः आपके लेखन में किस विधा की प्रधानता रही है उसके बारे में पाठकों को बताएं।
उमा ठाकुर नधैकः मुझे लोक साहित्य विषय बहुत आकर्षित करता रहा है। बचपन गांव में बीतने के कारण मुझे गांव के रीति-रिवाज देव परंपरा और लोक संस्कृति के विभिन्न रंगों को करीब से देखने व महसूस करने का मौका मिला। जिसकी वजह से ही शायद मैं श्महासुवी लोक संस्कृति,श् शोधपूर्ण पुस्तक का सृजन कर पाई और कविता लेखन, हिंदी, हिमाचली पहाड़ी गद्य लेखन, संस्मरण,हाईकू व शोध पूर्ण आलेख लिखना मुझे पसंद है।
अशोक दर्दः आपके लेखन की शुरुआत कब हुई, इसके लिए आपको प्रेरणा कहां से मिली आपकी पहली रचना कौन सी थी, पाठकों को जरूर बताएं।
उमा ठाकुर नधैकः मुझे बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का शौक रहा है मेरे दादाजी के पास धार्मिक पुस्तकों का भंडार था, जिन्हें मैं उत्सुकता के साथ पढ़ा करती थी। मेरे पिताजी मेरे लिए एक डायरी लाए थे, जिसमें मैं अपनी दिनचर्या एवं छोटे-छोटे संस्मरण लिखा करती थी। मेरी मां के जीवन संघर्ष ने मुझे लेखन के लिए प्रेरित किया। जब मैं 12वीं में पढ़ रही थी इस दौरान मैंने अपनी पहली रचना आदर्श इंसान लिखी। साहित्य लेखन की शुरुआत सही मायने में 7- 8 वर्ष पहले से ही हुई जब शिमला में आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम में जाने और वरिष्ठ साहित्यकारों को सुनने का मौका मिला। उनके मार्गदर्शन से बहुत कुछ सीखा और अभी भी सीख ही रही हूं।
अशोक दर्दः क्या आपसे पूर्व भी परिवार में कोई साहित्य सृजन की ओर उन्मुख था?
उमा ठाकुर नधैकः जी नहींः सृजनरत् तो कोई नहीं था मगर मैंने अपने दादाजी व पिताजी को धार्मिक पुस्तकें पढ़ते हुए जरूर देखा था।
अशोक दर्दः आप अपने अग्रज लेखकों और समकालीन लेखकों की रचनाधर्मिता से प्रभावित हुए या प्रभाव ग्रहण किया होगा विशेषकर अपने किसी प्रेरणा स्रोत के संदर्भ में आप क्या कहना चाहेंगे?
उमा ठाकुर नधैकः मैं हिमाचल प्रदेश के अग्रज लेखकों और समकालीन लेखकों की लेखनी को आत्मसात करने की जरूर कोशिश करती हूं ।जब भी मुझे मौका मिलता है किताबें पढ़ना पसंद करती हूं बहुत सी पुस्तकें शिमला के किताब घर से खरीदी हैं ।हाल ही में मैंने शिमला के अपने नए घर में एक कोना किताबों के लिए बनाया है। घर पर ही छोटी सी लाइब्रेरी के साथ ही श्हिमवाणीश् मीडिया चैनल और हिमवाणी यू-टयूब (ब्लाग)चैनल के माध्यम से हिमाचली लेखकों की पुस्तकों पर लाइव समीक्षा करती हूं ताकि उनका लिखा ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुंचे। हिमाचल की लेखनी को सराहना व प्रोत्साहन मिले । हिमाचली पहाड़ी भाषा व साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत 870 एपिसोड हो चुके हैं ।अपने अग्रज और समकालीन लेखकों को जब हम पढ़ते हैं तो हम जरूर कुछ न कुछ सीखते हैं। मगर हर लेखक की सोच का अपना दायरा होता है या फिर विधा का चयन अलग होता है। हां! जो भी मुझे ग्रहण करने योग्य लगता है उसे जरूर अपनी डायरी में लिख लेती हूं। मै कुछ नामों का जिक्र जरुर करना चाहुगी जिनके जीवन संघर्ष व लेखन से मैं प्रभावित हूं -वरिष्ठ साहित्यकार एस.एन जोशी,वरिष्ठ साहित्यकार कहानीकार एसआर हरनोट, समकालीन लेखिका व सखी कल्पना गागंटा, वरिष्ठ साहित्यकार व शब्दमंच के संपादक जय कुमार जिन्होंने मेरी कच्ची पक्की रचना को स्थान देकर और बेहतर लिखने को प्रेरित किया। इसके अलावा मेरे प्रेरणा सत्रोत है वरिष्ठ साहित्यकार, उपन्यासकार रमेश चन्द शर्मा (रिटायर्ड आईएएस) अब वे इस दुनिया में नही, मगर लगभग 95 वर्ष यानि अंतिम सासं तक सृजनरत् रहे। सभी का नाम लेना संभव नही मगर अग्रज व समकालीन लेखकों का लेखन जीवन में प्रभाव जरुर छोड़ता है।
अशोक दर्दः मानव जीवन में कला को किस रूप में देखते हैं?
उमा ठाकुर नधैकः मेरा यह मानना है कि मानव जीवन में कला का बहुत बड़ा महत्व है। कला हमारे जीवन को समृद्ध बनाती है और साथ ही हमारे व्यक्तित्व के विकास में भी अहम भूमिका निभाती है, जिससे हमारी रचनात्मकता, कल्पनाशीलता और आत्मविश्वास और प्रगाढ़ होता है। इसका महत्व हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में महसूस किया जा सकता है। जीवन में सबके अलग-अलग क्षेत्र में शौक होते हैं और मेरा शौक बचपन से ही पढ़ना रहा है तो मेरा यही प्रयास रहता है कि अपनी लेखन कला के माध्यम से समाज और राष्ट्र निर्माण में अपने स्तर पर छोटा सा योगदान दे पाऊं।
अशोक दर्दः आपके लेखन का लेखा-जोखा क्या लिखा क्या छोटा अभी तक।
उमा ठाकुर नधैकः जी अभी तक ज्यादा कुछ नहीं लिखा। बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। अब तक मेरी दो पुस्तकें महासुवी लोक संस्कृति शोधपूर्ण वर्ष 2019, नवल किरण काव्य संग्रह 2021, हिमाचली भाषा रे मणके संपादित व प्रकाशित पहाडी साझा काव्य संग्रह-2023, पांच साझा संग्रह विभिन्न विधाओं में और विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में शोध पत्र आलेख, कविता, संस्मरण आदि प्रकाशित होते आ रहे हैं मगर मुझे लगता है कि हमारे अग्रज हमारे कालजयी साहित्यकारों द्वारा सब कुछ तो लिखा जा चुका है फिर हमारे लेखन का क्या औचित्य?इस प्रश्न का उत्तर मैं अपने भीतर जब टटोलती हूं, तो पाती हूं कि बेशक बहुत कुछ रचा-गढा जा चुका है, मगर जो छूट गया, बाकी वह मेरे हिस्से की धूप। यानी मुझे अपनी लेखनी से लोक संस्कृति के अनछुए पहलुओं को संपूर्ण तरीके से उजागर कर पाठकों तक पहुंचाना है, ताकि हमारा लोक साहित्य गांव की मुंडेर से विश्व पटल तक पहुंच सके।
अशोक दर्दः आपके लेखन में सर्वाधिक प्रिय विधा कौन सी है , जिससे आपको सुकून मिलता है।
उमा ठाकुर नधैकः मुझे कविता लेखन सबसे प्रिय है इसमें तथ्यपूर्ण शोध की आवश्यकता नहीं, कुछ बनावटी नहीं, बस अंत:करण में जो उथल-पुथल है विचारों की, उसे कागज पर उकेरना है मानो शून्य से शून्य घटा, बचा शून्य ।
अशोक दर्दः आप मंचों पर भी रचना पाठ करते हैं आज के मंचों में और पहले के मंचों में कोई अंतर देखते हैं आप?
उमा ठाकुर नधैकः जी मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि मुझे प्रतिष्ठित सरकारी व गैर सरकारी मंचों पर अपनी बात कहने का मौका मिला। फिर चाहे वह कविता कहानी हो या शोध पत्र वाचन। मंचों पर अपनी बात कहने से ज्यादा सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है । बस एक ही बात अखरती है जब लेखक कभी अपनी-अपनी कविता सुना कर जाने की जल्दी में होता है , एक और बात जो मैंने जानी कि जब भी किसी लेखक की कृति का विमोचन और समीक्षा होती है तो समीक्षक केवल तारीफ के पुल ही बांधता है ।उस पुस्तक में क्या कमियां रह गई हैं यह उजागर करने से गुरेज करता है । एक बात और कि नवोदित कवि एक ही कविता मंच से पढ़ने के बाद युवा साहित्यकार घोषित किया जाता है। मुझे लगता है यह उन वरिष्ठ व प्रतिष्ठित साहित्यकारों का कहीं न कहीं अनादर है। युवा लेखक को प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए मगर साहित्यकार की श्रेणी तक पहुंचने के लिए शब्दों की धीमी आंच में तपना पड़ता है । बरसों का पठन-पाठन व लेखन ही एक लेखक को साहित्यकार बनाता है। युवा लेखक या कवि के संदर्भ में भी यही बात लागू होती है कि उसे जरूर सराहना मिलनी चाहिए मगर झूठी प्रशंसा से उसे आत्ममुग्धता के मोह पाश में न बांधें यानी उनके शब्दों को उड़ान जरूर दें और साथ ही साहित्य की बारीकियां भी समझाएं।
अशोक दर्द : रचना को संभालने में काव्य गोष्ठियों का क्या कुछ योगदान रहता है ?
उमा ठाकुर नधैक: जी! जब आप कुछ नया रचते हैं और उसे पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं तो मुझे लगता है कि लेखक और दर्शकध् पाठक के बीच का रिश्ता और मजबूत होता है । आपके शब्द सीधे पाठकों के दिल तक उतरते हैं। आप ही की आवाज में या फिर तरन्नुम में गाकर और साथ ही प्रतिष्ठित मंचों से जो कही हुई रचना किसी पत्रिका में छप जाती है तो लेखक को प्रतिष्ठा भी देती है।
अशोक दर्द: आपके सृजन में परिवार का सहयोग?
उमा ठाकुर नधैक: मेरे परिवार के सभी लोग मेरे लेखन से बहुत खुश हैं। सृजन मेरा शौक है । ऑफिस,परिवार व समाज की जिम्मेदारी के बाद जो भी वक्त बचता है वह सब लेखन को समर्पित है। मेरे पति श्री संजीव कुमार जो हिमवाणी संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष भी हैं और बिजनेस के साथ-साथ समाज सेवा में भी सक्रिय हैं,पठन-पाठन व लेखन में भी रुचि रखते हैं ।एम.एस.सी बायो. एम.फिल व मास्टर इन जर्नलिज्म हैं । यानी पढ़ने का माहौल घर पर है । मेरा बेटा आयुष जो साहित्यिक गोष्ठियों में मेरे साथ जाता रहता है मुझे लिखने के लिए हमेशा प्रेरित करता है। मेरे लेखन से सबसे ज्यादा खुश मेरी सास श्रीमती सावित्री देवी है जिनके पास मंड्याली लोक साहित्य का अनमोल खजाना है, जिसमें विवाह संस्कार गीत, खासकर मंड्याली में गाई जाने वाली घोड़ियाँ शामिल हैं। ये गीत पुराने जमाने से मौखिक रूप से ही पीढी दर पीढी चलते आ रहे हैं कोशिश करुगी कि भविष्य में इन पारंपरिक विवाह संस्कार गीतों को पुस्तक मे संग्रहित करआने वाली पीढ़ियों को भी इस समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित करवा पाऊ।
अशोक दर्द: आपके लेखन की यात्रा में सम्मान पुरस्कार भी दर्ज हैं, कुछ प्रमुख सम्मान?
उमा ठाकुर नधैक: राजभाषा पुरस्कार, भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश शिमला- राज्य स्तरीय हिंदी दिवस के उपलक्ष पर आयोजित कार्यालयी हिंदी कार्य साधक ज्ञान प्रतियोगिता 2017 व 2024, साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा क्षेत्रीय बोली संवर्धक सम्मान 2020 व क्षेत्रीय बोली वीणा सम्मान 2021 वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ पर्यावरण संस्थाओं के द्वारा कविता संग्रह के लिए वृक्ष -सखा व तुलसी साहित्य सम्मान, हिमवाणी एवं मनीष पब्लिकेशन दिल्ली द्वारा हिंदी साहित्य में विविध विमर्श साझा संग्रह में उत्कृष्ट लेखन एवं साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य गौरव सम्मान, राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा राज्य स्तरीय महिला साहित्यकार सम्मान 2024, अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मंच साहित्य अकादमी दिल्ली और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव शिमला 2022 में श्हिमाचली लोकगीतों,श् पर शोध पत्र वाचन व राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत द्वारा शिमला पुस्तक मेले में साहित्यिक कार्यक्रमों के अंतर्गत श्लोक साहित्यश्पहाड़ी के संदर्भ में पत्र वाचन का शुभ अवसर प्रसारण, आकाशवाणी शिमला से म्हारा महासू पहाड़ी नाटक का वर्ष 2016 में 13 कड़ियों में प्रसारण ।आकाशवाणी शिमला में नैमेतिक उद्घोषक, कविता वार्ता पर चर्चा साहित्य दर्पण, युववाणी व महिला सम्मेलन का संचालन इत्यादि कई सामान्य पल व सम्मान पाने का गौरव है।
अशोक दर्द:नई पीढ़ी के लिए सृजन के प्रति मार्गदर्शन करते हुए उन्हें कोई गुरु मंत्र देना चाहेंगे?
उमा ठाकुर नधैक: वर्तमान संदर्भ की अगर मैं बात करूं तो आज की युवा पीढ़ी हाईटेक हो चुकी है। हम सभी जानते हैं सोशल मीडिया के जमाने में पुस्तक संस्कृति को बरकरार रखना चुनौती पूर्ण कार्य है मगर पुस्तक मेलों में युवाओ को जिस तरह से अपनी रुचि की किताबें टटोलते हुए देखते हैं वह एक आशा की किरण जरूर जगाता है कि युवा जिन्हें पढ़ने लिखने का शौक है या फिर शोध कार्य कर रहे हैं डिजिटल ई- बुक के साथ-साथ पुस्तकों को भी पढ़ रहे हैं । युवा वर्ग से बस यही कहूंगी साहित्य जरूर पढ़ें मगर अच्छा साहित्य ही पढ़ें । यकीनन यह आपकी बौद्धिक विकास में बहुत काम आएगा। कहते भी हैं कि हम जब किसी लेखक की कृति को पढ़ते हैं तो हम उस लेखक के जीवन अनुभव जितनी उम्र अपने बौद्धिक ज्ञान की उम्र में जोड़ देते हैं। इंटरनेट पर बहुत सी पुस्तकें हैं अब तो ऑडियो -बुक का भी चलन है आप चलते-फिरते काम के साथ-साथ अपनी रुचि की किताबें पढ़ सकते हैं। मैं युवा वर्ग से यही कहूंगी कि लेखन के क्षेत्र में जाने से पहले कालजयी लेखकों और समकालीन लेखकों की कृतियों को जरूर पढ़ें । नशे व अवसाद से बचे ,सृजन नहीं भी करना है तो भी पुस्तकें पढ़कर आप ज्ञानवर्धन कर सकते हैं क्योंकि पुस्तकों से बढ़कर कोई मित्र नहीं।
अशोक दर्द: अपने लेखन की उपलब्धि आपकी नजर में?
उमा ठाकुर नधैक: मेरे लिखे शब्द से यदि एक भी युवा प्रभावित होता है तो मैं समझूंगी मेरा लेखन सफल हो गया यही मेरी मेरे लेखन की उपलब्धि भी और पुरस्कार भी।
अशोक दर्दः अंत में पाठकों के लिए अपनी कविता की पंक्तियां सुनना चाहेंगी।
उमा ठाकुर नधैक: पहाड़ और औरत कविता की कुछ पंक्तियां आप सब की नजर-चूल्हे की तपन में ध्रिश्तों का ताना-बाना बुनती ध्घुप अंधेरा खेत-खलिहान, आसमान की चादर ओढ़ेध् देवड़ी लाँघ टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजर, चूल्हे से घासनी का सफर ध्तय करती बिना धूप-छाँव की फिक्र के...। नहीं जानती पहाड़ के उस पार का जीवन जानती है बस इतना कि उसकी गाय उसकी बाट जोह रही है मन में उठता बंद गहराई में उतर रहा भीतर-बहुत भीतर वजूद की तलाश में....।