शिक्षक कभी भूतपूर्व नहीं होते: पद्मश्री स्वामी डा.भारत भूषण

गौरव सिंघल, सहारनपुर। अंतर्राष्ट्रीय  योगगुरु पद्मश्री स्वामी डा. भारत भूषण आज अनायास अपनी सहधर्मिणी इष्ट शर्मा के साथ अपने कॉलेज टाइम के ९७ वर्षीय वयोवृद्ध शिक्षक डा. पुरुषोत्तम स्वरूप के गिल कॉलोनी स्थित निवास पर पहुंचे और उनके संग अपने स्कूली जीवन के संस्मरणों की याद ताजा की। इस अचानक आगमन से आश्चर्यचकित डा. गुप्ता के परिजनों को पदमश्री स्वामी भारत भूषण ने कहा कि गुरु, पिता और मित्र के पास कभी भी जाया जा सकता है, वहां से निमंत्रण की अपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पचास साल पहले हुई कॉलेज टाइम की बातें याद हो आई, कुछ भी तो नहीं बदला, गुरु जी भी वैसे ही हैं अपनी पुरानी खनक के साथ आज भी हमें बहुत कुछ देने की स्थिति में है। 

स्वामी भारत भूषण ने कहा कि सच्चाई यह है कि शिक्षक कभी भी भूतपूर्व नहीं होता बल्कि अनुभव के साथ समाज को और भी अधिक देने के लिए परिपक्व होता चला जाता है। उन्होंने इसे व्यवस्था की कमी बताया कि सेवानिवृत्ति के साथ ही जीवन भर हजारों बच्चों के बीच रहने और उनसे अपना ज्ञान और अनुभव साझा करने वाला शिक्षक उस स्कूली वातावरण से एकदम अलग हो जाता है। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद भी कुछ शर्तों के साथ कुछ घंटों के लिए स्वैच्छिक सेवा देने का अवसर या विकल्प शिक्षक को दिए जाने की बात कही और बताया कि इससे उनके जीवन को अर्थ व बच्चों को उनके परिपक्व ज्ञान और वर्तमान नए शिक्षकों को उनके अनुभवसंपन्न अध्यापन कौशल का लाभ मिल सकता है। 

योग गुरु भारत भूषण ने इस बात को याद करके चुटकी ली कि घर से काम करके चेक न कराने वाले कुछ बच्चे पिटाई के डर से स्वयं ही अपनी कॉपी पर पुस्व लिखकर पुरुषोत्तम स्वरूप के लघु हस्ताक्षर कर लेते थे और कह देते थे कि उनकी कापी चैक्ड है। उन्होंने श्री गुप्त के नैतिक बल और अनुशासन के सराहना करते हुए बताया कि एक बार कॉलेज का गेट फांद कर बाहर कूद जाने पर कैसे उन्होंने मुझे उसी तरह से अंदर वापिस आने का दबाव बनाया और फिर कभी ऐसा न करने की नसीहत देकर अनुशासन की महिमा सिखाई थी। इस अवसर पर श्री गुप्ता के पौत्र सचिन सहित पूरा परिवार मौजूद रहा।

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