उमा देवी का दिव्य रूप से देवताओं को दर्शन देना, देवताओं का उनसे अपना अभिप्राय निवेदन करना और देवी का अवतार लेने की बात स्वीकार करके देवताओं को आश्वासन देना.......
अतः मैं रूद्रदेव के संतोष के लिए अवतार लूंगी और लौकिक गति का आश्रय लेकर हिमालय पत्नी मेना की पुत्री होऊंगी। ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! ऐसा कहकर जगदम्बा शिवा उस समय समस्त देवताओं के देखते-देखते अदृश्य हो गयीं और तुरन्त अपने लोक में चली गयीं। तदनन्तर हर्ष से भरे हुए विष्णु आदि समस्त देवता और मुनि उस दिशा को प्रणाम करके अपने-अपने धाम में चले गये। (अध्याय-4)
मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवा देवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म.....
नारद जी ने पूछा- पिताजी! जब देवी दुर्गा अन्तर्धान हो गयीं और देवगण अपने-अपने धाम को चले गये, उसके बाद क्या हुआ? ब्रह्माजी ने कहा- मेरे पुत्रों मंे श्रेष्ठ विप्रवर नारद! जब विष्णु आदि देवसमुदाय हिमालय और मेना देवी को देवी की आराधना का उपदेश दे चले गये, जब गिरिराज हिमाचल और मेना दम्पत्ति ने बड़ी भारी तपस्या आरम्भ की। वे दिन-रात शम्भु और शिवा का चिन्तन करते हुए भक्तियुक्त चित्त से नित्य उनकी सम्यक् रीति से आराधना करने लगे। हिमवान् की पत्नी मेना बड़ी प्रसन्नता से शिव सहित शिवा देवी की पूजा करने लगीं। वे उन्हीं के संतोष के लिए सदा ब्राह्मणों को दान देती रहती थीं। (शेष आगामी अंक में)