मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवा देवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म
ब्रह्मा जी कहते हैं- नारद! मेना के ऐसा कहने पर सर्वमोहिनी कालिका देवी ने मन में अत्यन्त प्रसन्न हो अपनी दोनों बाहों से खींचकर मेना को हृदय से लगा लिया। इससे उन्हें तत्काल महाज्ञान की प्राप्ति हो गयी। फिर तो मेना देवी प्रिय वचनों द्वारा भक्ति भाव से अपने सामने खड़ी हुई कालिका की स्तुति करने लगीं।
मेना बोली- जो महामाया जगत् को धारण करने वाली चण्डिका, लोकधारिणी तथा सम्पूर्ण मनोवांछित पदार्थों को देने वाली हैं, उन महादेवी को मैं प्रणाम करती हूं। जो नित्य आनन्द प्रदान करने वाली माया, योगनिद्रा, जगज्जननी तथा सुन्दर कमलों की माला से अलंकृत हैं, उन नित्यसिद्धा उमा देवी को मैं नमस्कार करती हूं। जो सबकी मातामही, नित्य आनन्दमयी, भक्तों के शोक का नाश करने वाली तथा कल्प पर्यन्त नारियों एवं प्राणियों की बुद्धिरूपिणी हैं, उन देवी को मैं प्रणाम करती हूं। आप यतियों के अज्ञानमय बन्धन के नाश की हेतुभूता ब्रह्मविद्या हैं। फिर मुझ जैसी नारियां आपके प्रभाव का क्या वर्णन कर सकती हैं। अथर्ववेद की जो हिंसा (मारण आदि का प्रयोग) है, वह आप ही हैं। देवि! आप मेरे अभीष्ट फल को सदा प्रदान कीजिए। भावहीन (आकार रहित) तथा अदृश्य नित्यानित्य तन्मात्राओं से आप ही पंचभूतों के समुदाय को संयुक्त करती हैं। आप ही उनकी शाश्वत शक्ति हैं। आपका स्वरूप नित्य है। आप समय-समय पर योगयुक्त एवं समर्थ नारी के रूप में प्रकट होती हैं। आप ही जगत् की योनी और आधार शक्ति हैं। आप ही प्राकृत तत्वों से परे नित्या प्रकृति कही गयी हैं। (शेष आगामी अंक में)