शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (472) गतांक से आगे......

मेना को प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिवा देवी का उन्हें अभीष्ट वरदान से संतष्ट करना तथा मेना से मैनाक का जन्म

वे बल पराक्रम से युक्त तथा ट्टद्धि-सिद्धि से सम्पन्न हों। उन पुत्रों के पश्चात मेरे एक पुत्री हो, जो स्वरूप और गुणों से सुशोभित हो। वह दोनों कुलों को आनन्द देने वाली तथा तीनों लोकों में पूजित हो। जगदम्बिके! शिवे! आप ही देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए मेरी पुत्री तथा रूद्रदेव की पत्नी होइये और तदनुसार लीला कीजिये।

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! मेनका की बात सुनकर प्रसन्नहृदया देवी उमा ने मनोरथ को पूर्ण करने के लिए मुसकराकर कहा।

देवी बोलीं-पहले तुम्हें सौ बलवान् और प्रधान होगा, जो सबसे पहले उत्पन्न होगा। तुम्हारी भक्ति से संतुष्ट हो मैं स्वयं तुम्हारे यहां पुत्री के रूप में कार्य सिद्ध करूंगी। ऐसा कहकर जगद्धात्री परमेश्वरी कालिका शिवा मेनका के देखते-देखते वहीं अदृश्य हो गयी। तात! महेश्वरी से अभीष्ट वर पाकर मेनका को भी अपार हर्ष हुआ। उनका तपस्याजनित सारा क्लेश नष्ट हो गया। मुने! फिर कालक्रम से मेना के गर्भ रहा और वह प्रतिदिन बढ़ने लगा। समयानुसार उसने एक उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया, जिसका नाम मैनाक था। उसने समुद्र के साथ उत्तम मैत्री बांधी। वह अद्भुत पर्वत नागवधुओं के उपभोग का स्थल बना हुआ है। उसके समस्त अंग श्रेष्ठ हैं। हिमालय के सौ पुत्रों में वह सबसे श्रेष्ठ और महान् बल-पराक्रम से सम्पन्न है। अपने से या अपने बाद प्रकट हुए समस्त पर्वतों में एकमात्र मैनाक ही पर्वतराज के पद पर प्रतिष्ठित है।          (अध्याय 5)      (शेष आगामी अंक में)

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