देवी उमा का हिमवान् के हृदय तथा मेना के गर्भ में आना, गर्भस्था देवी का देवताओं द्वारा स्तवन, उनका दिव्य रूप में प्रादुर्भाव, माता मेना से बातचीत तथा नवजात कन्या के रूप में परिवर्तित होना
ब्रह्मा जी कहते हैं-नारद! तदन्नतर मैना और हिमालय आदरपूर्वक देव-कार्य की सिद्धि के लिए कन्या प्राप्ति के हेतु वहां जगज्जननी भगवती उमा का चिन्तन करने लगे, जो प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देने वाली है, वे महेश्वरी उमा अपने पूर्ण अंश से गिरिराज हिमवान् के चित्त में प्रविष्ट हुई। इससे उनके शरीर में अपूर्व एवं सुन्दर प्रभा उतर आयी। वे आनन्दमग्न हो अत्यन्त प्रकाशित होने लगे। उस अद्भुत तेजोराशि से सम्पन्न महामना हिमालय अग्नि के समान अधृष्य हो गये थे। तत्पश्चात् सुन्दर कल्याणकारी समय में गिरिराज हिमालय ने अपनी प्रिया मेना के उदर में शिवा के उस परिपूर्ण अंश का आधान किया। इस तरह गिरिराज की पत्नी मेना ने हिमवान् के हृदय में विराजमान करूणानिधान देवी की कृपा से सुखदायक गर्भ धारण किया। सम्पूर्ण जगत् की निवासभूता देवी के गर्भ में आने से गिरिप्रिया मेना सदा तेजोमण्डल के बीच में स्थित होकर अधिक शोभा पाने लगीं। अपनी प्रिया शुभांगी मेना को देखकर गिरिराज हिमवान् बड़ी प्रसन्नता का अनुभव करने लगे। गर्भ में जगदम्बा के आ जाने से महान् तेज से सम्पन्न हो गयी थीं। मुने! उस अवसर पर में विष्णु आदि देवता और मुनियों ने वहां आकर गर्भ में निवास करने वाली शिवा देवी की स्तुति की और तदन्नतर महेश्वरी की नाना प्रकार से स्तुति करके प्रसन्नचित्त हुए।
(शेष आगामी अंक में)