अम्बिका प्रदीप शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भावनाओं को कविता में गढ़ती हूं मैं।
मन की पीड़ा के गीत पढ़ती हूं मैं।।
जो कही न गई हो किसी से किसी।
बात ऐसी भी हैं जो मन ही में रही।
कही, अनकही को कहती हूं मैं।
मन की पीड़ा के गीत पढ़ती हूं मैं।।
किसी को खुशी,गम किसी को मिले।
लोग मेले में भी अकेले मिले।
वेदना सबके मन की पढ़ती हूं मैं।
मन की पीड़ा के गीत पढ़ती हूं मैं।।
पीर औरों की मुझको अपनी लगे।
गीत लिखती हूं जैसे अनुभव मिले।
धूप संग सघन छांव लिखती हूं मैं।
मन की पीड़ा के गीत पढ़ती हूं मैं।
सिवनी, मध्य प्रदेश