शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (478) गतांक से आगे......

पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहां  जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना

नारद! गिरिराज हिमालय ने तुम्हें घर पर आया देख प्रणाम करके तुम्हारी पूजा की और अपनी पुत्री को बुलाकर उससे तुम्हारे चरणों में प्रणाम करवाया। मुनीश्वर! फिर स्वयं ही तुम्हें नमस्कार करके हिमाचल ने अपने सौभाग्य की सराहना की और अत्यन्त मस्तक झुका हाथ जोड़कर तुमसे कहा। 

हिमालय बोेले- हे मुने नारद! हे ब्रह्मपुत्रों में श्रेष्ठ ज्ञानवान् प्रभो! आप सर्वज्ञ हैं और कृपापूर्वक दूसरों के उपकार में लगे रहते हैं। मेरी पुत्री की जन्मकुण्डली में जो गुण-दोष हो, उसे बताइये। मेरी बेटी किसकी सौभाग्यवती प्रिय पत्नी होगी।

ब्रह्माजी कहते हैं- मुनिश्रेष्ठ! तुम बातचीत में कुशल और कौतुकी तो हो ही, गिरिराज हिमालय के ऐसा कहने पर तुमने कालिका का हाथ देखा और उसके सम्पूर्ण अंगों पर विशेष रूप से दृष्टिपात करके हिमालय से इस प्रकार कहना आरम्भ किया।

नारद बोले- शैलराज और मेना! आपकी यह पुत्री चन्द्रमा की आदिकला के समान बढ़ी है। समस्त शुभ लक्षण इसके अंगों की शोभा बढ़ाते हैं। यह अपने पति के लिए अत्यन्त सुखदायिनी होगी और माता-पिता की भी कीर्ति बढ़ायेगी। संसार की समस्त नारियों में यह परम साध्वी और स्वजनों को सदा महान् आनन्द देने वाली होगी। गिरिराज। तुम्हारी पुत्री के हाथ में सब उत्तम लक्षण विद्यमान हैं।                                                                (शेष आगामी अंक में)

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